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पोंगल क्या है - जानिए पौराणिक कथा, अर्थ और महत्व

पोंगल क्या है – जानिए पौराणिक कथा, अर्थ और महत्व

आज के इस लेख में आपको पोंगल क्या है की जानकारी प्राप्त होने वाली है|

यदि मै आज से 15-20 वर्ष पहले की बात करू तो दक्षिणी भारतीयों के अलावा शायद 5% लोगो को मालूम था की पोंगल नामक भी कोई त्यौहार होता है.

लेकिन आज इन्टरनेट के जवाने में जब जिसको जिस भी चीज़ के बारे में जानकारी चाहिए होती है, उनको वो कुछ सेकंड्स में मिल जाती है.

लेकिन मुझे यकीन है कि उत्तरी और पुर्वीय भारत में कई ऐसे मनुष्य होंगे जिनको पोंगल के बारे में कुछ भी नहीं पता होगा, उन्होंने बस इसका नाम न्यूज़ के माध्यम से सुना होगा.

यदि आप भी उन्ही भारतवासियों में से हैं जिनको सिर्फ पोंगल शब्द का पता है, लेकिन यह क्या होता है कैसे मनाया जाता कब मनाया जाता है वो नहीं मालूम है तो मै आपको बता दूं कि यह लेख सिर्फ आपके लिए ही है.

पोंगल क्या है – Information About Pongal Festival in Hindi

उत्तर भारत के जो मकर संक्रांति का त्योहार होता है दक्षिण भारत में उसी त्यौहार को “पोंगल” के रूप में मनाया जाता है|

यह त्योहार गोवर्धन पूजा, दिवाली और मकर संक्रांति का मिला-जुला रूप है|

पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है, ठीक उसी तरह जैसे की बैसाखी.

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क्या आपने कभी ओणम त्यौहार के बारे में सुना है ?

जिस प्रकार ओणम् केरलवासियों का महत्त्वपूर्ण त्योहार है, ठीक उसी प्रकार पोंगल त्यौहार तमिलनाडु के लोगों का महत्त्वपूर्ण पर्व है|

यह बात हम सभी जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के द्वारा आजीविका अर्जित करती है|

आज कल तो उद्योगिकरण के साथ-साथ कृषि कार्य भी मशीनों से किया जाने लगा है| परन्तु पहले कृषि मुख्यत: बैलों पर आधारित थी, बैल और गाय इसी कारण हमारी संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं.

भगवान शिव का वाहन यदि बैल है तो भगवान श्रीकृष्ण गोपालक के नाम से जाने जाते हैं|

गायों की हमारे देश में माता के समान पूज्य मानकर सेवा की जाती रही है| गाय केवल दूध ही नहीं देती बल्कि वो हमें बछड़े प्रदान करती है जो खेती करने के काम आते हैं.

तमिलनाडुवासी तो पोंगल त्यौहार के अवसर पर विशेष रूप से गाय और बैलों की पूजा करते हैं| पोंगल अर्थात खिचड़ी का त्योहार सूर्य के उत्तरायण होने के पुण्यकाल में मनाया जाता है.

यह उत्सव लगभग तीन दिन तक चलता है| लेकिन मुख्य पर्व पौषमास (इंग्लिश के कैलेंडर के अनुसार यह या तो दिसम्बर का महिना होता है या फिर जनवरी का) की प्रतिपदा को मनाया जाता है|

अगहन मास में जब हरे-भरे खेत लहलहाते हैं तो कृषक स्त्रियाँ अपने खेतों में जाती हैं| भगवान से अच्छी फसल होने की प्रार्थना करती है|

इन्हीं दिनों घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ हो जाती है| अमावस्या के दिन सब लोग एक स्थान पर एकत्र होते हैं, इस अवसर पर लोग अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हैं|

अपनी रीति-नीतियों पर विचार करते हैं और जो अनुपयोगी रीति-नीतियाँ हैं उनका परित्याग करने की प्रतिज्ञा की जाती है.

आइये जानते हैं पोंगल का अर्थ क्या है – पोंगल क्या है ?

पोंगल के पहले अमावस्या को जिस प्रकार 31 दिसम्बर की रात को गत वर्ष को संघर्ष और बुराइयों का साल मानकर विदा किया जाता है, उसी प्रकार पोंगल को भी प्रतिपदा के दिन तमिलनाडुवासी बुरी रीतियों को छोड़ने की प्रतिज्ञा कर अच्छी चीजों को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करते हैं.

यह कार्य ‘पोही’ कहलाता है तथा जिसका अर्थ है- “जाने वाली”

पोंगल का तमिल में अर्थ उफान या विप्लव होता है। पोही के अगले दिन अर्थात प्रतिपदा को दिवाली की तरह पोंगल की धूम मच जाती है|

पोंगल की पौराणिक कथा क्या है – पोंगल की कथा

कथानुसार शिव अपने बैल वसव को धरती पर जाकर संदेश देने के लिए कहते हैं कि मनुष्यों से कहो कि वे प्रतिदिन तेल लगाकर नहाएं और माह में 1 दिन ही भोजन करें.

वसव धरती पर जाकर उल्टा ही संदेश दे देता है। इससे क्रोधित होकर शिव शाप देते हैं कि जाओ, आज से तुम धरती पर मनुष्यों की कृषि में सहयोग दोगे.

पोंगल के पकवान – Pongal Festival Information in Hindi

इस दिन विशेष तौर पर खीर बनाई जाती है। इस दिन मिठाई और मसालेदार पोंगल व्यंजन तैयार करते हैं। चावल, दूध, घी, शकर से भोजन तैयार कर सूर्यदेव को भोग लगाते हैं.

इस त्योहार पर गाय के दूध को बहुत महत्व दिया जाता है| इसका कारण है कि जिस प्रकार दूध का उफान शुद्ध और शुभ है उसी प्रकार प्रत्येक प्राणी का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए| इसीलिए नए बर्तनों में दूध उबाला जाता है.

पोंगल के त्यौहार में चार दिन का उत्सव होता है – Pongal Essay in Hindi

पोंगल का उत्सव 4 दिन तक चलता है, पहले दिन भोगी, दूसरे दिन सूर्य, तीसरे दिन मट्टू और चौथे दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है.

पहले दिन भोगी पोंगल में इन्द्रदेव की पूजा, दूसरे दिन सूर्यदेव की पूजा, तीसरे दिन को मट्टू अर्थात नंदी या बैल की पूजा और चौथे दिन कन्या की पूजा होती है, जो काली मंदिर में बड़े धूमधाम से की जाती है.

पोंगल का त्यौहार कहा और कैसे मनाया जाता है – पोंगल क्या है हिंदी में पढ़े

पोंगल 4 दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की और तीसरे दिन पशुधन की पूजा
होती है। चौथे दिन काली पूजा होती है.

अर्थात दिवाली की तरह रंगाई-पुताई, लक्ष्मी की पूजा और फिर गोवर्धन पूजा की तरह मवेशियों की पूजा|

घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है, नए वस्त्र और बर्तन खरीदते हैं। बैलों और गायों के सींग रंगे जाते हैं| सांडों-बैलों के साथ भाग-दौड़कर उन्हें नियंत्रित करने का जश्न भी होता है.

दक्षिण भारत का नव वर्ष – पोंगल कब मनाया जाता है ?

हम ऐसा कह सकते हैं कि जिस प्रकार उत्तर भारत में नववर्ष की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से होती है उसी प्रकार दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है.

आइये अंत में जानते हैं कि पोंगल क्यों मनाया जाता है ?

दक्षिण भारत में धान की फसल समेटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्योहार मनाते हैं और भगवान से आगामी फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं|

समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप, सूर्य, इन्द्रदेव तथा खेतिहर मवेशियों की पूजा और आराधना की जाती है.

दोस्तों मेरा यह लेख यही पर समाप्त हो रहा है, आशा है आपको पोंगल क्या है का लेख पसंद आया होगा और आपको पोंगल त्यौहार से जुड़ी पूरी जानकारी इस लेख में मिली होगी, यदी मुझसे कोई पॉइंट छुट गया है तो आप कमेंट के माध्यम से पूछ के क्लियर कर लीजिये.

अब आप चाहो तो पोंगल त्यौहार की विशेष जानकारी के इस लेख को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर भी कर सकते हैं.

मकर संक्रांति ⇓

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