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सम्पूर्ण महाभारत कथा की कहानी हिंदी में

महाभारत कथा भाग 3 – कुरुक्षेत्र में हुआ भयंकर महाभारत युद्ध

हमने पहले 2 भाग में महाभारत के आधे भाग का ज्ञान कर लिया था अब हम बाकी की महाभारत कथा की कहानी आज इस भाग में पढ़ेंगे.

अगर आपको महाभारत की पूरी कहानी हिंदी में पढनी और अच्छे से समझनी है तो आप पहले इसके पिछले भाग को पढ़े सर्वप्रथम उसके बाद इस भाग को पढ़े तभी आपको सम्पूर्ण महाभारत कथा अच्छे से समझ आएगी.

मै उम्मीद करता हूँ की महाभारत कथा के भाग 1 और भाग 2 को आपने पढ़ लिया होगा| तो चलिए अब इस आखिरी भाग को पढ़ना प्रारंभ करते है.

पांडवों का राज्य – महाभारत कथा हिंदी में

जब कौरव रण भूमि से भाग गये थे तब पांडवों ने अपने आप को सबके सामने सार्वजनिक रूप से प्रकट कर दिया था| जब राजा विराट को पता चला की वह पांडव है तब राजा विराट बहुत खुश हुए|

राजा विराट ने अपनी पुत्री उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से कर दिया था| इस विवाह में श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम तथा सभी बड़े बड़े राजा सम्मलित थे.

अर्जुन के पुत्र के विवाह के बाद पांडव अपने राज्य वापस लोटना चाहते थे इसीलिए उन्होंने श्री कृष्ण को अपना दूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा |

श्रीकृष्ण हस्तिनापुर गये और वहा उनका यथोचित सत्कार हुआ फिर श्री कृष्ण ने धृतराष्ट्र को बोला “हे राजन पांडवों ने यह कहलवाया है हमने अपना वनवास व् अज्ञातवास पूरा कर लिया है अब आप हमे हमारा आधा राज्य वापस लोटा दीजिये”

वहा बैठे सभी लोगो ने धृतराष्ट्र को समझाया की आप पांडवों का राज्य वापस लोटा दे लेकिन दुर्योधन को यह बात सुनकर बहुत गुस्सा आया और उसने सभी के सामने कहा की मेरे पिता धृतराष्ट्र ज्येष्ठ पुत्र है और मै उनका ज्येष्ठ पुत्र हूँ चाचा पाण्डु का पिताजी धृतराष्ट्र के होते हुए किसी भी राज्य पर कोई अधिकार नही बनता मेरे पिता का अधिकार बनता है और मै मेरे पिता का राज्य किसी को भी देने की अनुमति नही देता|

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मै किसी को भी सुई की नोक जितनी सम्पत्ति भी नही दूंगा यदि पांडवों को राज्य चाहिए तो वो हमसे युद्ध करे| सभी ने दुर्योधन को बहुत समझाया लेकिन दुर्योधन अपनी ही बात पर अड़ा रहा और यह बात सुनकर श्री कृष्ण पांडवों के पास वापस चले गये| अब पांडवों और कौरवों के बिच युद्ध निश्चित हो गया.

एक दिन दुर्योधन श्री कृष्ण से युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिए द्वारकापुरी गये| जब दुर्योधन श्री कृष्ण के पास गये तो श्री कृष्ण निद्रा मग्न थे|

अत: दुर्योधन कृष्ण जी के सिरहाने जा बेठा इसी के थोड़ी देर बाद ही पाण्डु पुत्र अर्जुन भी श्री कृष्ण के पास इसी कार्य के लिए पहुचे और उनको सोया देखकर वो उनके पैरों की और बैठ गये|

जब श्री कृष्ण उठे तो उनकी दृष्टि अर्जुन पर पड़ी और अर्जुन के कुशल मंगल हाल पूछने के बाद कृष्ण जी ने आने का कारण पूछा फिर अर्जुन बोले|

भगवान मै आपसे युद्ध के लिए सहायता लेने आया हूँ तभी दुर्योधन भी बोला मै भी आपसे सहायता लेने आया हूँ क्यूंकि मै अर्जुन से पहले आया था इसीलिए सहायता पहले मांगने का अधिकार मेरा है|

तभी भगवान श्री कृष्ण बोले की मेरी नजर पहले अर्जुन पर पड़ी है और तुम कहते हो की तुम पहले आये हो तो इसीलिए मै तुम दोनों में से किसी एक को अपनी पूरी सेना दे दूंगा और एक के साथ खुद हो जाऊँगा लेकिन मै ना ही युद्ध करूंगा और ना ही शस्त्र धारण करूंगा अब आप लोग निश्चय कर ले की किसे क्या चाहिए.

अर्जुन ने श्री कृष्ण को माँगा और यह सुनकर दुर्योधन खुश हो गया क्यूंकि वह विशाल सेना की वजह से ही श्री कृष्ण के पास आया था| श्री कृष्ण बोले की अर्जुन मैंने कहा था की मै युद्ध नही करूंगा फिर भी तुमने मेरा चयन क्यों किया ? तब अर्जुन बोले भगवान आप जहा है वहा विजय ही विजय है इसिलए मेरी इच्छा है की आप मेरे युद्ध में मेरे सारथी बने.

महाभारत में शांतिदूत श्री कृष्ण – महाभारत का युद्ध

युधिष्ठिर अपनी सात अक्षौहिणी सेना के साथ युद्ध करने के लिए त्यार हो गए फिर भगवान् श्री कृष्णा दुर्योधन के पास दूत बन कर गए उन्होंने ग्यारह अक्षौहिणी सेना के स्वामी दुर्योधन से कहा की दुर्योधन तुम पांडवों को या तो राज्य दे दो या फिर पाँच ही गाँव दे दो.

यह बात सुनकर दुर्योधन बोले की मै एक सूई की नोंक जितना भी हिस्सा पांडवों को नही दूंगा मै इनसे युद्ध करूंगा यह बात कहकर दुर्योधन श्री कृष्णा को बंदी बनाने के लिए उघत हो गया फिर भगवान् श्री कृष्णा ने दुर्योधन को अपने विश्वरूप का दर्शन कराकर भयभीत कर दिया|

इसके बाद विदुर ने भगवान् कृष्णा को अपने घर ले जाकर उनका आदर सत्कार किया इसके बाद ही कृष्णा जी युधिष्ठिर के पास गए और बोले महाराज आप दुर्योधन के साथ युद्ध शुरू करे.

अब दोनों सेना महाभारत युद्ध के लिए मैदान में उत्तर चुकी थी तभी श्री कृष्णा ने अर्जुन को समझाया की पार्थ आप शोक के योग्य नही है क्यूंकि सिर्फ शरीर मरता है और आत्मा कभी नही मरती, आत्मा हमेशा जीवित रहती है|

अर्जुन यह बात सुनकर युद्ध क्षेत्र में उत्तर गए दोनों और से शंख ध्वनि हुई और दुर्योधन की तरफ से पहले पितामह भीष्म सेनापती हुए| पांडवोंके सेनापती शिखंडी हुई|

महाभारत कथा का यह युद्ध बहुत ही बड़े संग्राम जैसा था और सभी देवता इस युद्ध को आसमान से देख रहे थे और अर्जुन ने दस दिन तक युद्ध लगातार करके दुर्योधन की अधिकाँश सेना को मार डाला था.

महाभारत में भीष्म पितामह का वध और महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य का वध

भीष्म बाणों की मृत्यु शैया पर लेटे हुए थे| अर्जुन ने भीष्म पर खूब बाण चलाए लेकिन उनकी मृत्यु नही हुई और अर्जुन जानता था यदि भीष्म की मृत्यु नही हुई तो यह युद्ध समाप्त नही होगा इसीलिए अर्जुन ने भीष्म से ही पूछा की आपकी मृत्यु करने का क्या कारण है तब उन्हें भीष्म ने बताया की:-

मै अपने पिछले जन्म में एक बार शिकार पर जा रहा था तब मेने धोके से एक साप को तीर मार दिया था वह साप दस दिन तक तड़पता रहा फिर उसकी मृत्यु हुई उसी के शाप के कारण आज मेरी भी यही हालत है और अगर तुम अपने रथ पर शिखंडी को बिठा लो तब मेरी मृत्यु संभव है क्यूंकि वे ही पिछले जन्म में अम्बा थी और मै अब भी शिखंडी को नारी का रूप मानता हूँ.

अर्जुन ने यही किया और शिखंडी को अपने रथ पर बिठाया और भीष्म पर बाण चला दिए तब भीष्म ने अपना धनुष छोड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी इसके बाद आचार्य द्रोण ने सेनापती का भार संभाला.

पाण्डवों की सेना में धृष्टद्युम्न सेनापती बने उन दोनों में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ युद्ध में गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए एक चक्रव्यूह की रचना की | पांडवों के पक्ष में अर्जुन और श्री कृष्णा ही चक्रव्यूह तोडना जानते थे, अर्जुन पुत्र को सिर्फ चक्रव्यूह में प्रवेश करना आता था निकलना नही|

अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस गया और तभी कौरवों ने चक्रव्यूह में प्रवेश करने का द्वार बंद कर दिया और तब भी अर्जुन पुत्र ने हार नही मानी वह अकेला ही लड़ता रहा और उसने कई योद्धाओं को मार गिराया|

तब ही सूर्यपुत्र कर्ण और गुरु द्रोण ने अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को मारने की सोची और उन्होंने अभिमन्यु के रथ के पहिये में तिर मार दिया और अभिमन्यु गिर गए और तभी कौरवों ने अभिमन्यु पर आक्रमण करके उसकी मृत्यु कर दी इसके बाद जब अर्जुन को पता चलता है की अभिमन्यु मर चूका है और अभिमन्यु की मृत्यु का कारण जयद्रथ है तो वे प्रतिज्ञा ले लेता है की यदी वह सूर्योदय तक जयद्रथ को ना मार पाया तो वह अग्नि समाधी ले लेगा.

महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद क्या हुआ – महाभारत कथा हिंदी में

दुर्योधन की सारी सेना युद्ध में मारी गयी पांडवों की भी आधी सेना नष्ट हो चुकी थी| अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने रात्रि में पांडवों के शिविर में जाकर पांडवों के पांचों पुत्रों को मार दिया तब द्रोपदी यह देखकर विलाप करने लगी.

अश्वत्थामा ने पांचों पुत्रों के सर काट दिए थे| अर्जुन अब प्रतिज्ञा ले चूका था की वह अश्वत्थामा का विनाश कर देगा और अर्जुन के डर से अश्वत्थामा वहा से भाग निकला|

भयभीत होकर उसने बह्रमास्त्र का प्रहार अर्जुन पर कर दिया तब अर्जुन ने श्री कृष्णा से पूछा की भगवान सामने से यह जो अग्नि मेरी और आ रही है यह क्या है तब श्री कृष्णा ने बताया की यह अग्नि भ्रम अस्त्र है जो अश्वत्थामा ने छोड़ा है अब तुम भी बह्रमास्त्र छोड़ कर इस बह्रमास्त्र को रोको तब अर्जुन ने भी बह्रमास्त्र का वार किया|

दोनों अस्त्र एक दूसरे से टकराये और अग्नि प्रज्वलित हुई जो तीनो लोको को तप्त करने लगी इस अग्नि से सब और ज्वाला ही ज्वाला हो गयी और यह देखकर अर्जुन ने दोनों बह्रमास्त्र को शांत कर दिया और अश्वत्थामा को पकड़ लिया.

अर्जुन ने अश्वत्थामा को बाँध कर द्रोपदी के सामने प्रकट किया और द्रोपदी को गुरुपुत्र को बन्दा देखकर दया आ गयी| द्रोपदी ने तो गुरुपुत्र को छोडने के लिए बोल दिया लेकिन भीम का क्रोध शांत नही हुआ और फिर अर्जुन ने टुवर्ड्स से अश्वत्थामा के केश काट डाले और उसकी मणि निकाल ली और उसे श्री हीन कर दिया|

इसके बाद सभी पांडव अपने स्वजनों को जलदान देने के लिए जाते है तभी उनकी वधू उत्तरा जोर जोर से चिल्लाती है “मुझे बचाओ मुझे बचाओ” और श्री कृष्णा देखते है की अश्वत्थामा ने फिर से पांडव कुल को नष्ट करने के लिए बह्रमास्त्र का प्रयोग किया है जिससे वधू उत्तरा का गर्भ तपने लगा है|

तभी भगवान श्री कृष्णा अश्वत्थामा को शाप देते है की वह समय के अंत तक नर्क में वास करेगा और श्री कृष्ण उस बह्रमास्त्र को रोक कर उस तप से एक शिशु को उसकी गर्भ में पुनर्जीवित कर देते है| इस तरह यह नया शिशु पांडवों के कुल को आगे बढाता है.

अब युद्ध समाप्त हो गया था और पांडवों को राज्य मिल गया था| इसके बाद भगवान श्री कृष्णा अर्जुन को साथ लेकर अपने घर द्वारिका लेकर गए और वहाँ जाकर उन्होंने तपस्या में लीन होकर अपना शरीर त्याग दिया इस लोक को छोड़कर चले गए थे.

अर्जुन और सारा कुल उनके बिना शांत शांत सा हो गया था, सब और शांति सी फेल पड़ी थी, पेड़ भी सुख गए थे और सभी जानवरो ने भी खाना पीना बंद सा कर दिया था और सभी लोग मन से परेशान से रहने लगे थे, सूर्य का प्रकाश भी घट सा गया था, सभी शोक मग्न हो गए थे और इसके बाद इंद्र के लाये रथ पर सवार होकर सभी स्वर्ग में चले गए|

“जो भी व्यक्ति इस महाभारत का पाठ करेगा वह स्वर्ग में अपनी जगह अवश्य बना लेगा”

महाभारत कथा की कुछ महत्वपूर्ण बातें – महाभारत के बाद का इतिहास

महाभारत की घटना एक अद्भुत घटना है यह घटना एक बहुत ही अचंबित कर देने वाली घटना है क्यूंकि इस युद्ध का असली कारण सिर्फ चचेरे भाइयों की लड़ाई है|

कुरुक्षेत्र में हुए इस युद्ध में इतनी जाने गयी है की आज भी वहा की मिटटी का रंग लाल ही है| महाभारत की समाप्ति के बाद पांडवों का शासन से मोह ही खत्म हो गया था क्यूंकि पाण्डव श्री कृष्णा के जाने के कारण शोक अवस्था में थे.

सबसे पहले द्रोपदी की मृत्यु हुई थी और इसके बाद सभी पांडव मरे लेकिन एक युधिष्ठिर ऐसे थे जिन्हे शरीर के साथ स्वर्ग में प्रवेश मिल गया था| स्वर्ग जाते समय पांडवों के साथ एक काला कुत्ता भी यात्रा पर था और वह काला कुत्ता युधिष्ठिर के साथ अंत तक चलता रहा क्यूंकि बाकि सब पाण्डव और द्रोपदी अपने देह पहले ही त्याग चुके थे|

जब यमराज युधिष्ठिर को लेने के लिए आये और युधिष्ठिर बोले में स्वर्ग अपने भाईयो के बिना नही जाऊंगा तब यमराज बोले की वे सब आपको वही मिलेंगे और यह काला कुत्ता मेरा ही स्वरूप है जो आपके साथ है| तब युधिष्ठिर ख़ुशी ख़ुशी यमराज के साथ स्वर्ग चले गए.

एक अहम जानकारी यह भी है की अपने स्वर्ग की यात्रा से पहले पांडव अपना राज्य परीक्षित के पास छोड़ गए थे उनके बाद राजा परीक्षित ने ही हस्तिनापुर में शासन किया और राजा परीक्षित के वंशज निचक्षु इस शासन के आखरी राजा थे.

जब युधिष्ठिर स्वर्ग में गए तब उन्होंने देखा की उनके भाई वहा नही है और कौरव वहा है तब उन्होंने यमराज से पूछा मेरे भाई कहा है तो उन्हें पता चला की उनके भाई नर्क में है|

युधिष्ठिर अपने भाइयों को देखने नर्क गए और उनका यह हाल देखकर युधिष्ठिर ने ईश्वर से पूछा की मेरे भाई यहा क्यों है ? तब ईश्वर ने बताया की युद्ध के आखिर तक कौरव अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते रहे उन्होंने सच्चे क्षत्रिय की तरह अपने प्राणो को त्यागा है और अंतिम में पांडवों में जरा अहंकार आ गया था|

युद्ध जितने का हिज कारण उन्हें नर्क में रखा गया है लेकिन यह कुछ समय के लिए ही है कुछ समय बाद पांडवों को स्वर्ग में और कौरवों नर्क में भेज दिया जायेगा.

प्रिय पाठकों, मै हिमांशु ग्रेवाल आपके सामने महाभारत कथा का एक छोटा रूप लेकर आया हूँ| महाभारत एक बहुत बड़ी कहानी या गाथा है इसे समझना मुश्किल है| यह मैंने आपको सरल भाषा में पूरी महाभारत का ज्ञान दिया है मुझे उम्मीद है की आपको यह जानकारी पसंद जरूर आई होगी.

आपको सम्पूर्ण महाभारत कथा पढ़ कर कैसा लगा हमको कमेंट के माध्यम से जरुर बताये अथवा जितना हो सके इस लेख को सोशल मीडिया पर शेयर करें. “धन्यवाद”

भारत का इतिहास ⇓

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