आज हम आपको महाराणा प्रताप का जीवन परिचय, इतिहास और महाराणा प्रताप की सम्पूर्ण कहानी के बारे में बताएँगे.
महान योद्धा महाराणा प्रताप का नाम इतिहास के पन्नो में सुनहरे शब्दों में लिखा गया है| महाराणा प्रताप और मुगलों के बिच हुए युद्ध की समूर्ण कहानी हम आपको यहाँ बताएंगे बस आप तैयार रहिये.
महाराणा प्रताप की कथा पढ़ने में आपको बेहद आनंद आयेगा| महाराणा प्रताप और मुगलों के बिच हुए घमासान युद्ध की कहानी में महाराणा प्रताप जी ने मुगलों को धुल चटाई थी जिसे आज पूरा भारतवर्ष अच्छी तरह जानता है.
मेवाड़ के वीर योद्धा महाराणा प्रताप की बात ही निराली है|
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय हिंदी में
महाराणा प्रताप का नाम इतना प्रसिद्ध है की हर जगह जब वीर योधाओं की बात होती है तो महाराणा प्रताप जी का भी नाम सामने आता है, महाराणा प्रताप की वीरता की कहानी से भारत की भूमि गर्व से हरी भरी है| महाराणा प्रताप मेवाड़ के प्रजा के राजा थे.
महाराणा प्रताप एक ऐसे वीर योद्धा थे जो हमेशा अपनी प्रजा के हित के लिए सोचते थे और अपनी प्रजा की रक्षा के लिए हमेशा दुश्मनों से युद्ध करने लिए हमेशा तत्पर रहते थे.
प्रजा उनके शाशन में हमेशा खुश रहती थी| महाराणा प्रताप ने मुगलों से कई बार युद्ध करा है| महाराणा प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वशंज थे.
महाराणा प्रताप बहादुर राजपूत थे जिनकी वीरता को पूरा देश भी सलाम करते थे| महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में निपूर्ण थे ही लेकिन वे एक भावुक और धर्म की रक्षा करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे| महाराणा प्रताप की सबसे पहली गुरु उनकी माता जयवंता बाई जी थीं.
महाराणा प्रताप का इतिहास – महाराणा प्रताप जयंती
पूरा नाम : | महाराणा प्रताप सिंह (राजपूत) |
महाराणा प्रताप के पिता का नाम : | श्री राणा उदय सिंह जी |
महाराणा प्रताप की माता का नाम : | श्रीमती जयवंता बाई जी |
महाराणा प्रताप की पत्नी का नाम : | श्रीमती अजब्देह |
महाराणा प्रताप का जन्म : | 09 मई 1540 को |
महाराणा प्रताप की मृत्यु : | 29 जनवरी 1597 |
महाराणा प्रताप का पुत्र : | श्री अमर सिंह और भगवान दास |
महाराणा प्रताप के घोडे का नाम : | चेतक |
महाराणा प्रताप की कहानी – Maharana Pratap Story in Hindi
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 में उत्तर दक्षिण भारत के मेवाड़ (राजस्थान) में हुआ था| हिंदी पंचाग के अनुसार यह दिन ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की तीज को आता हैं| आज भी इस दिन राजस्थान में महाराणा प्रताप का जन्मदिन मनाया जाता हैं.
महाराणा प्रताप जी बचपन से ही प्रभावशाली, गुणवान और युद्ध में कुशल थे वे हमेशा से ही लोगों की मदद करने के लिए तत्पर रहते थे| उनके शाशन में प्रजा सुख से जीवन व्यतीत करती थी.
महाराणा प्रताप का प्यार आज भी राजस्थानियों के दिलों में कुट कुट कर भरा हुआ है| आज भी महाराणा प्रताप का जन्मदिन खूब धूम धाम से बनाया जाता है| मेवाड़ के सभी लोग उन्हें याद करते हैं.
महाराणा प्रताप उदयपुर के राणा उदय सिंह एवम महारानी जयवंता बाई के पुत्र थे| महाराणा प्रताप की पहली रानी का नाम अजब्देह पुनवार था| अमर सिंह और भगवान दास इनके दो पुत्र थे| महाराणा प्रताप के पुत्र श्री अमर सिंह ने बाद में राजगद्दी संभाली थी और अपनी प्रजा की सेवा की|
महाराणा प्रताप की राजगद्दी – Veer Maharana Pratap History in Hindi
महाराणा प्रताप की राजगद्दी को बाद में उनके पुत्र श्री अमर सिंह ने संभाला लेकिन महाराणा प्रताप सिंह जी के पिता जी श्री उदय सिंह जी की और पत्नियाँ थीं जिनमे से एक रानी धीर बाई थी जो की उदय सिंह जी की पसंदीदा पत्नी थी.
रानी धीर बाई की इच्छा थी की मेवाड़ का राजा उनका पुत्र जगमाल राणा बने|
ऐसे तो उदय राणा जी के 2 पुत्र शक्ति सिंह और सागर सिंह भी थे और उनकी इच्छा भी यही थी की वे मेवाड़ के उत्तरदायी बने मगर मेवाड़ की किस्मत और भाग्य में केवल यही लिखा था की महाराणा प्रताप राजस्थान के राजा बने और उनकी प्रजा सहित उनके पिता श्री उदय सिंह भी यही चाहते थे की महाराणा प्रताप मेवाड़ की जागीर संभाले.
महाराणा प्रताप की इस जीत को कई लोग नहीं सह पाए और उनके अपनों ने भी यही समझा की महाराणा प्रताप मेवाड़ की गद्दी सँभालने लायक नहीं है जिसके चलते राजपूतों में दरार आ गयी और फिर क्या होना था इस दरार का मुगलों ने खूब फायदा उठाया.
महाराणा प्रताप और उनके पारिवारिक मतभेद – महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
महाराणा प्रताप के परिवार में कुछ लोग उन्हें पसंद नहीं करते थे जिसका फायदा मुगलों ने बखूबी उठाया और चित्तोड़ की भूमि पर अपना झंडा फेहरा दिया| अकबर के आगे कई राजाओं ने घुटने टेक दिए थे और गुलामी मंजूर कर ली थी.
इस दरार के चलते मुगलों ने चित्तोड़ को अपना गुलाम बना लिया और तो और कई राजपुतों को अकबर के आगे घुटने टेकने पड़े… न चाहते हुए भी अकबर की गुलामी करनी पड़ी|
अगर उनमे आज कोई दरार न पड़ी होती तो शायद मुगलों की हिम्मत भी नहीं होती की वे अपनी आंखे भी उठा कर देखे चित्तोड़ की ओर
कुछ राजपूतों के हार जाने के कारण ही मुग़ल को राजपूतों की शक्ति प्राप्त हुई और जिसका महाराणा प्रताप ने अकेले ही सामना किया और अंतिम साँस तक लडते रहे| उदय सिंह जी और महाराणा प्रताप के शाशन में प्रजा खुश रहा करती थी.
महाराणा प्रताप को प्रजा और महाराज उदय सिंह जी दोनों ही बहुत पसंद करते थे मगर महाराणा प्रताप के भाई उन्हें पसंद नहीं करते थे यही कारण था की उनकी एकता में फुट का|
प्रताप के खिलाफ लोगों की संख्या – प्रताप के खिलाफ राजपुताना
अकबर बहुत शातिर और जांबाज मुग़ल थे| रानी जोधा जी के आने के बाद उनमे बहुत सारे बदलाव आये थे.
अकबर से हारने के बाद जिन लोगों को हार मिली उन्हें मजबूरन अकबर का साथ देना पड़ा| महाराणा प्रताप से नफरत करने वाले लोगो ने भी अकबर का खूब साथ दिया जिनकी संख्या अनगिनत थी.
अकबर ने उदय सिंह जी को भी अपने अधीन करने की पूरी कोशिश की| अकबर ने राजा मान सिंह को अपने ध्वज तले सेना का सेनापति बनाया इसके टोडरमल, राजा भगवान दास सभी को अपने साथ मिलकर सन् 1556 में महाराणा प्रताप और राणा उदय सिंह के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.
हल्दीघाटी की लड़ाई | हल्दीघाटी का युद्ध | Haldighati War in Hindi
हल्दी घाटी का युद्ध सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है, मुगलों और राजपूतों के बिच हुए युद्ध को आज भी चित्तोड़ भुला नहीं है| आज भी महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई को भुला नहीं है.
आज भी चित्तोड़ की भूमि खून से लथपथ है| महाराणा प्रताप और अकबर के युद्ध में गयी जाने आज भी चित्तोड़ में अपनी यादें बसाये बैठी हैं.
सन् 1576 में राजा मान सिंह ने अकबर की तरफ से 5000 सैनिकों का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी पर पहले से 3000 सैनिको को तैनात कर युद्ध की शुरुआत की| दूसरी तरफ अफ़गानी राजाओं ने महाराणा प्रताप का साथ दिया, जिनमे हाकिम खान सुर ने महाराणा प्रताप का मरते दम तक साथ दिया.
हल्दीघाटी का यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा, मेवाड़ की प्रजा को किले के भीतर पनाह दी गई, प्रजा एवम राजकीय लोग एक साथ मिलकर रहने लगे, लंबे युद्ध के कारण अन्न जल तक की कमी होती गयी, महिलाओं ने बच्चो और सैनिको के लिए खुद का अपना भोजन खाना कम कर दिया था.
सभी ने एकता के साथ प्रताप का इस युद्ध में साथ दिया| महारणा प्रताप के हौसलों को देख अकबर भी राजपूतों के हौसलों की प्रसंशा करने से खुद को रोक नहीं पाया लेकिन अन्न जल के आपूर्ति में महाराणा प्रताप यह युद्ध हार गये.
हल्दीघाटी की लड़ाई का आखिरी दिन – Maharana Pratap Biography in Hindi
युद्ध के अंतिम दिन जोहर प्रथा के चलते राजपूत महिलाओं ने एक जुट बना कर आग (अग्नि) में अपने आप को भस्म कर लिया और कई स्त्रियों ने लड़ाई के मैदान में लड़ कर वीरगति को प्राप्त किया.
इन सबके बाद अधिकारीयों ने राणा उदय सिंह, महारानी धीर बाई जी और जगमाल के साथ महाराणा प्रताप के पुत्र को पहले ही चित्तोड़ से दूर भेज दिया था.
युद्ध के एक दिन पूर्व उन्होंने प्रताप और अजब्दे को नीन्द की दवा देकर किले से गुप्त रूप से बाहर कर दिया था| इसके पीछे उनका सोचना था कि राजपुताना को वापस खड़ा करने के लिए भावी संरक्षण के लिए प्रताप का जिन्दा रहना बहुत जरुरी हैं.
महाराणा प्रताप का जंगल में जीवन – Biography of Maharana Pratap in Hindi
महाराणा प्रताप को हराने के चक्कर में मुगुलो ने जब किले पर हक़ जमाया तो उन्हें महाराणा प्रताप कहीं नहीं मिले और अकबर का महाराणा प्रताप को पकड़ने का सपना पूरा नही हो पाया.
युद्ध के उपरांत कई दिनों तक महाराणा प्रताप के जंगल में जीवन जीने के बाद मेहनत के साथ महाराणा प्रताप ने नया नगर बसाया जिसे चावंड नाम दिया गया.
अकबर ने बहुत कोशिशे की महाराणा प्रताप को अपने अधीन करने की उन्हें हराने की उन्हें बंधी बनाने की लेकिन वो महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर सका.
महाराणा प्रताप की पत्नी का नाम क्या था ? – महाराणा प्रताप हिस्ट्री
महाराणा प्रताप की पहली पत्नी का नाम अजब्देह था| इसके आलावा महाराणा प्रताप की 11 पत्नियाँ और भी थी| महाराणा प्रताप के कुल 17 पुत्र एवम 5 पुत्रियाँ थी जिनमे अमर सिंह सबसे बड़े पुत्र थे.
वे अजब्देह के पुत्र थे| महाराणा प्रताप के साथ अमर सिंह जी ने शासन संभाला था और चित्तोड़ की रक्षा की मरते दम तक|
महाराणा प्रताप की पत्नी अजबदे की कहानी – Maharana Pratap and Ajabde Love Story in Hindi
सभी के जीवन में एक बार प्यार का मोड़ आता ही है चाहे जल्दी हो या फिर देर से मगर आता ही है ये मोड़ ऐसे ही महाराणा प्रताप और उनकी पत्नी की कहानी उनकी पहली पत्नी का नाम अजब्देह है जो की सामंत नामदे राव राम रख पनवार की बेटी थी.
अजबदे स्वभाव से बहुत ही शांत एवं सुशील थी। अजबदे बिजोली की राजकुमारी थी| बिजोली चित्तोड़ के आधीन था| प्रताप की माँ जयवंता एवम अजबदे की माँ अपने बच्चो के विवाह के पक्ष में थी| उस दौर में बाल विवाह की प्रथा थी.
अजबदे ने प्रताप को कई परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने में साथ दिया था। वो हर तरह से महारानी जयवंता बाई जी की छवि थी। उन्होंने युद्ध के दौरान भी प्रजा के बीच रहकर उनके मनोबल को बनाये रखा था.
महाराणा प्रताप के बारे में अन्य जानकारीयां – Facts About Maharana Pratap in Hindi
महाराणा प्रताप की कुल 12 पत्नियाँ थीं| महाराणा प्रताप के कुल 22 बच्चे थे जिनमे 17 तो लड़के और 5 लड़कियां थी| महाराणा प्रताप को पहली पत्नी अजबदे से अमर सिंह प्राप्त हुए जिन्होंने युद्ध के दौरान अपने पिता की बहुत सहायता की थी.
महाराणा प्रताप के घोडे की कहानी | चेतक की कहानी | Story of Chetak in Hindi
एक समय की बात है जब राणा उदय सिंह ने बचपन में महाराणा प्रताप को राजमहल में बुलाकर दो घोड़ो में से एक का चयन करने कहा। एक घोडा सफ़ेद था और दूसरा नीला।
जैसे ही प्रताप ने कुछ कहा उसके पहले ही उनके भाई शक्ति सिंह ने उदय सिंह से कहा की उसे भी घोड़ा चाहिये, शक्ति सिंह शुरू से अपने भाई से घृणा करते थे.
प्रताप को नील अफ़गानी घोड़ा पसंद था लेकिन वो सफ़ेद घोड़े की तरफ बढ़ते हैं और उसकी तारीफों के पूल बाँधते जाते हैं| उन्हें बढ़ता देख शक्ति सिंह तेजी से सफ़ेद घोड़े की तरफ जा कर उसकी सवारी कर लेते है.
उनकी शीघ्रता देख राणा उदय सिंह शक्ति सिंह को सफ़ेद घोड़ा दे देते हैं और नीला घोड़ा प्रताप को मिल जाता हैं| इसी नीले घोड़े का नाम चेतक था जिसे पाकर प्रताप बहुत खुश थे.
महाराणा प्रताप और चेतक का इतिहास – Maharana Pratap and Chetak History in Hindi
चेतक नील रंग का अफ़गानी अश्व था| चेतक, महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा था| चेतक में संवेदनशीलता, वफ़ादारी और बहादुरी कूट कूट कर भारी हुई थी.
चेतक की फुर्ती, चेतक की शक्ति, चेतक की ताकत
महाराणा प्रताप की कई वीरता की कहानियों में चेतक का नाम सबसे ऊँचा हैं| चेतक की फुर्ती की मदद से प्रताप ने कई युद्धों को आसानी से जीता| महाराणा प्रताप अपने चेतक से पुत्र की भांति प्रेम करते थे.
हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक घायल हो गया था| उसी समय बीच में एक बड़ी नदी आ जाती हैं जिसके लिए चेतक को लगभग 21 फिट की चौड़ाई को लांगना था.
चेतक प्रताप की रक्षा के लिए उस दुरी को लांग कर तय कर गया| लेकिन चेतक ने घायल होने के कारण कुछ ही दुरी के बाद अपने प्राण त्याग दिए.
21 जून सन् 1576 को चेतक ने महाराणा प्रताप से विदा ले ली। इसके बाद आजीवन प्रताप के मन में चेतक के लिए एक टीस सी रह गयी| आज भी हल्दीघाटी में राजसमंद में चेतक की समाधी हैं जिसे दर्शनार्थी उसी श्र्द्धा से देखते हैं जैसे प्रताप की मूरत को देखा जाता है.
चेतक की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है चेतक जैसा घोडा धुड़ने से भी नहीं मिलेगा. ये बात तो सब जानते है.
महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई – Mharana Pratap Death Date in Hindi
महारणा प्रताप एक जंगली दुर्घटना के कारण घायल हो गए थे। 29 जनवरी 1597 में प्रताप अपने प्राण त्याग देते हैं.
इस वक्त तक इनकी उम्र केवल 57 वर्ष थी। जी हाँ महारणा प्रताप जी ने अपने प्राण 57 की उम्र में ही त्याग दिए थे| आज भी उनकी याद में राजस्थान में महोत्सव होते हैं। उनकी समाधी पर लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। महारणा प्रताप का जन्म दिन मनाया जाता है.
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Bhut achi post likhe hai aapne bro
aapke is blog par maine dekha ki aap kuch post aapne tech se related likhi hai or kuch education ke liye to may yah jaanna chahta hun ki kya ek blog par is trah alg alg topic par likhna sahi hai
iske sath saath aap traffic ke liye kya pad service ka use karte hai please bataye mere blog ka traffic kam hai.
1. में कोई पेड सर्विस का इस्तेमाल नही करता|
2. यह मेरा multitopic ब्लॉग है इसलिए में सभी प्रकार के आर्टिकल लिखता हूँ| अगर आपका ब्लॉग किसी 1 टॉपिक पर है तो उसी पर लिखे ज्यादा पोस्ट ऐड न करें|
Very informative article bro, keep sharing.
sir its really very informative thank to share with us 🙂
🙂
koi article likhne se phle uski puri knowledge gain krr leni chahiye himanshu grewal …….
nhi to aesi hi glti hoti h jaise tune ki h
कृपया करके हमको हमारी गलती बताये हम जल्द ही उसको ठीक करेंगे|
Bahut bhadiya