मकर संक्रांति क्यों कब और कैसे मनाया जाता है?
मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है? आज हम इस विषय में अच्छे से चर्चा करेंगे।
आज हम आपको मकर संक्रांति से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में और मकर संक्रांति पर 10 लाइन बतायेंगे। जैसे की मकर संक्रांति कब है 2021 में और मकर संक्रांति का महत्व क्या है?
मकर संक्रांति निबंध को शुरू करने से पहले मैं आपको यह बता देता हूँ कि 2021 में मकर संक्रांति कब है?
भारत देश में मकर संक्रांति 14 जनवरी (गुरुवार), 2021 को है।
वैसे मकर संक्रांति त्योहार के ऊपर मैंने पहले से ही एक और लेख लिखा हुआ है जिसमें मैंने मकर संक्रांति के ऊपर शायरी और इमेज शेयर की है और उस लेख को काफी सारे लोगों ने भी पसंद करा है। अगर आपको अपने परिवार वालों को मकर संक्रांति की बधाई देनी है या फिर इमेज डाउनलोड करनी है तो आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हो।
नोट: अगर आपको लेख पसंद आया तो इस लेख को और इस जानकारी को आप अपने दोस्तों के साथ शेयर साझा करें।
मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?
मकर संक्रांति हिन्दू धर्म का प्रमुख त्योहार है। यह पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप से मनाया जाता है। पोष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस संक्रांति को मनाया जाता है। यह त्यौहार अधिकतर जनवरी माह की चौदह तारीख को मनाया जाता है। कभी-कभी यह त्यौहार बारह, तेरह या पन्द्रह को भी हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य कब धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है।
मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं
👉 कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते है। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अंत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
👉 मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी, भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थी। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी. इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
👉 इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति को घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार प्रवत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
👉 यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदापर्ण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।
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मकर संक्रांति के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
धार्मिक दृष्टि से मकर संक्रांति का त्यौहार बेहद खास है, लेकिन क्या आप जानते हैं इस पर्व पर यह 9 काम बिल्कुल नहीं करने चाहिए।
- इस मौके पर प्रयास करें गंगा स्नान करने का अगर नहीं हो पाता है, तो आप घर पर ही प्रातः काल उठकर स्नान जरूर करें! कई लोग बिस्तर पर उठते ही चाय, कॉफी, Snacks खाते हैं। इस मौके पर आपको इस गलती से बचना चाहिए।
- यह दान पुण्य करने का पर्व है अतः इस दिन यदि कोई गरीब, भिखारी घर आ जाए तो खाली हाथ न लौटने दें, अपनी इच्छाशक्ति से भोजन कपड़े आदि कुछ दान जरूर करें।
- यह दिन सात्विक भोजन करने के लिए जाना जाता है तो इस मौके पर मीट, मांस आदि का आज का भोजन करने से बचना चाहिए।
- सूर्य भगवान पर असीम आस्था रखते हैं, तो इस मौके पर उन्हें प्रसन्न करने के लिए सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य भगवान की पूजा करें।
- इस त्यौहार को हरियाली का प्रतीक भी माना जाता है तो इस दिन पेड़ या फसल काटने से बचना चाहिए।
- इस शुभ दिन के मौके पर किसी को गलत ना बोलने की कोशिश करें, सभी के लिऐ आपके मुंह से मधुर वाणी निकलनी चाहिए।
- मान्यताओं के अनुसार इस दिन गाय भैंस का दूध दुहना शुभ नहीं होता।
- सिगरेट, गुटखा, मदिरापान इत्यादि नशीले पदार्थों के सेवन से बचें। इस दिन आपको मसालेदार भोजन का परहेज करना चाहिए। तथा खिचड़ी, तिल इत्यादि से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
👉 तो यह कुछ बातें थी जिन्हें ध्यान में रखकर आप धार्मिक नियमों का पालन कर ईश्वर की कृपा पाने के साथ-साथ इस त्यौहार को हर्षोल्लास के साथ अपने परिवार के साथ मना सकते हैं।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
अध्यात्म की दृष्टि से ही नहीं अपितु इस पर्व से वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से प्रकृति में भी इसका प्रभाव पड़ता है। इस दिन से नदियों, जलाशयों में वाष्पन क्रिया आरंभ होने लगती है। परिणाम स्वरूप नदी में नहाने से शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति आती है। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग हरिद्वार, काशी जैसे तीर्थ स्थानों पर स्नान के लिए कड़ाके की ठंड में भी उपस्थित रहते हैं। साथ ही माना जाता है इस पर्व के मौके पर गुड़, तिल का सेवन करने से शरीर में शक्ति का संचार होता है। साथ ही डॉक्टर बताते हैं इस दौरान मूंग, चावल, अदरक इत्यादि की खिचड़ी का सेवन करने से शरीर के रोगों से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
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प्रस्तावना
हमारा देश उत्सवों के लिए पूरे विश्व में विख्यात है, जहां मौसम के मुताबिक त्यौहार आते हैं और पौष के महीने में आने वाला ऐसा ही पावन पर्व है मकर संक्रांति।। सूर्य देव के राशि में परिवर्तन के कारण हर साल हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा यह पर्व 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का अर्थ
मकर शब्द से तात्पर्य मकर राशि से है। वहीं सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहा जाता है। जब सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में आगमन होता है तो उसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व
अध्यात्म की दृष्टि से मकर संक्रांति का पर्व देशवासियों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। देश के अलग-अलग राज्यों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जहां पारंपरिक तरीके से हर साल यह पर्व मनाया जाता है। इस मौके पर गंगा स्नान कर सूर्य भगवान का पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है इस दिन गंगा स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है साथ ही आत्मा भी शुद्ध हो जाती है। अतः इस दिन तीर्थ स्थलों पर बड़ी भीड़ लगी होती है, साथ ही राज्यों के अनुसार इस दिन स्वादिष्ट पकवान इस मौके पर बनाए जाते हैं। जिसमें तिल, गुड़ सबसे प्रमुख है, इस दिन तिल से बने खाद्य पदार्थों का दान करना एवं इनका भोजन करना शुभ माना जाता है।
मकर संक्रांति कार्यक्रम
हर्ष उल्लास के साथ हिंदू धर्म यह पर्व सदियों से मनाता आ रहा है। आज भी इस मौके पर पूरे देश में सार्वजनिक अवकाश रहता है। बिहार में जहां इस पर्व को खिचड़ी पर्व के तौर पर मनाते हैं वहीं उत्तराखंड, गुजरात में इसे उत्तरायण के पर्व के तौर पर माना जाता है। वहीं दक्षिणी भारत के राज्यों जैसे तमिलनाडु में पोंगल और हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में इसे माघी के नाम से मनाया जाता है। गुजरात में इस पर्व के मौके पर विशेष चहल-पहल रहती है क्योंकि लगभग सभी घरों में बच्चे बड़े, पुरुषों एवं महिलाओं द्वारा पतंगे उड़ाई जाती है। पूरे आसमान में 15 अगस्त के समान ही चारों ओर पतंगे आसमान को छूती दिखाई देती हैं।
निष्कर्ष
संक्षेप में कहें तो बदलते समय के साथ-साथ आज भी यह पर्व अपनी सांस्कृतिक महत्व को बनाए हुए है। और आज भी पारंपरिक अंदाज में पुराने रीति रिवाज, हर्षोल्लास के साथ यह पर्व देश में मनाया जाता है। यह त्यौहार मिलजुलकर रहने और खुशियां बांटने का संदेश देता है।
मकर संक्रांति पूजा विधि
मकर संक्रांति का पर्व विधिवत मनाने से भगवान सूर्य देव को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है अतः इस प्रकार आप भी इस मकर संक्रांति विधिवत घर में मकर संक्रांति का पूजन कर सकते हैं। बता दें यदि मध्य रात्रि के पश्चात मकर संक्रांति का पर्व हो तो अगली सुबह सूर्य भगवान की उपासना करना फलदाई होता है। विधिवत पूजा-अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं के लिए इस पर्व में व्रत रखने का प्रावधान है। जिन्हें सूर्योदय से पूर्व जागकर स्नान कर लेना चाहिए।
वैसे तो इस मौके पर गंगा स्नान सबसे शुद्ध एवं शुभ माना जाता है लेकिन अगर आप नहीं कर पाते तो आप घर पर ही कर सकते हैं। मान्यता है इस दिन स्नान करने के लिए रखे गए जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिए, इस पर्व पर तिल शुभ माना जाता है साथ ही जल को शुद्ध करने के लिए जल में थोड़ा सा गंगाजल भी शामिल किया जा सकता है।
नहाने के पश्चात सच्चे मन से सूर्य देव की पूजा कर आराधना करनी चाहिए। क्योंकि इस दिन सूर्य देव, भगवान शनिदेव से मिलने आते हैं। अतः शनि देव सूर्य देवता का तिल से पूजन करते हैं अतः माना जाता है इस मौके पर तांबे के लोटे / पात्र में जल, तिल, लाल फूल और सिंदूर डालकर प्रातः काल उगते सूरज को अर्पण करना चाहिए। साथ ही मकर संक्रांति के मौके पर भगवान विष्णु की भी पूजा-अर्चना का विधान है। तो इस मौके पर घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु की तिल से पूजा करनी चाहिए। और जाने अनजाने में हुई गलतियों, पाप कर्मों से मुक्ति देने की प्रार्थना करें।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस दिन भगवान को भोग भी तेल एवं तिल से बने खाद्य पदार्थों जैसे लड्डू से करना चाहिए। इस मौके पर किसी ब्राह्मण को भोजन कराना भी शुभ माना जाता है। इस पर्व पर अपने पितरों एवं पूर्वजों को भी याद कर तर्पण करना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
मकर संक्रांति पर इन चीजों को दान करने से बनते हैं बिगड़े काम
मकर संक्रांति के पर्व के मौके पर भगवान सूर्य देव की पूजा आराधना करने के पश्चात दान पुण्य करना बड़ा शुभ माना जाता है। आप दान में दाल, खिचड़ी, तिल के बने खाद्य पदार्थ को गरीबों एवं असहाय लोगों को दान कर सकते हैं।
मुझे पूरी उम्मीद है कि अब आपको पता चल गया होगा कि मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?, अगर आपको अभी भी इस विषय में कुछ पूछना है तो आप कमेंट के जरिए पूछ सकते हैं। जितना हो सके इस लेख को अन्य लोगों के साथ साझा करें। धन्यवाद
हिमांशु जी मकर संक्रांति14 jan को ही क्यों मनाया जाता हैं, हिन्दू calender के हिसाब से किसी तिथ ( जैसे :- द्वितीय, तृतीया) को क्यों नहीं। pls
जरुरी नही है की 14 जनवरी को ही मनाया जाये. जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसके हिसाब से देखकर तारिक तय की जाती हैं.
these informations are methodologically based and are not needed for classes under 8th. so i hope from next time i will be getting some logical facts.
एक तथ्य के अनुसार सूर्य देवता पहली बार अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर गए थे और शनि देव मकर राशि के स्वामी है, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है.
दूसरे तथ्य की बात करे तो, माना जाता है कि पवित्र गंगा नदी का इसी दिन धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए भी मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है.
भीष्म पितामाह ने मकर संक्रांति के दिन ही स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था और कहा जाता है कि उत्तरायण के दिन मृत्यु होने पर आपको दूसरा जन्म नहीं लेना पड़ता और पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है.
इस जानकारी के लिए धन्यवाद 🙂