मकर संक्रांति का महत्व और निबंध – जानिए क्यों मानते है संक्रांति का यह पवित्र त्यौहार
नमस्कार दोस्तों, आज के इस लेख में हम हिन्दू धर्म के साल के दुसरे त्यौहार मकर संक्रांति का महत्व के बारे में जानेंगे, आप इस लेख को Makar Sankranti Essay के तौर पर भी ध्यान में रख सकते है.
स्कूल और कॉलेज के बच्चे इस लेख में से मुख्य पंक्तियों को चुन कर आने वाले मकर संक्रांति 2018 पर अपने विद्यालय में इसे याद करके बोल सकते हैं, तो आइये दोस्तों शुरू करते हैं.
लेख को शुरू करने से पहले HimanshuGrewal.com के सभी विसिटर्स को हिमांशु ग्रेवाल की और से मकर संक्रांति 2018 की हार्दिक शुभकामनाये.
मकर संक्रांति का महत्व
हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमे कई तरह के त्यौहार मनाये जाते हैं, मकर संक्रान्ति भी हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार है| मकर संक्रान्ति का त्यौहार पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है.
पौष मास (इंग्लिश कैलेंडर के हिसाब से जनवरी माह को हिंदी में पौष कहा जाता है) जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है.
यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन को ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है.
मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है| इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं.
तमिलनाडु में यह त्यौहार पोंगल नामक के उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं.
Makar Sankranti 2018 Essay in Hindi
भारत एक 30 राज्यों वाला देश है, जिसमे काफी जगह एक ही त्यौहार को अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है और त्यौहार को मनाने के अपने-अपने अलग-अलग नियम है| आइये जानते हैं मकर संक्रांति का महत्व के अलग-अलग नाम-
- मकर संक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, और जम्मू|
- ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु
- उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड
- माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
- भोगाली बिहु : असम
- शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी
- खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
- पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल
- मकर संक्रमण : कर्नाटक
यह भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भाँति-भाँति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है| चलिए अब मकर संक्रांति इन हिंदी के नाम जानते हैं भारत के बाहर|
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Shakrain/ पौष संक्रान्ति |
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माघे सङ्क्रान्ति या ‘माघी सङ्क्रान्ति’ ‘खिचड़ी सङ्क्रान्ति’ |
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สงกรานต์ सोङ्गकरन |
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पि मा लाओ |
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थिङ्यान |
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मोहा संगक्रान |
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पोंगल, उझवर तिरुनल |
मकर संक्रांति पर निबंध और महत्व
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं का प्रतीक माना गया है| इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है.
ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है.
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व
- ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं| चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है|
- महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था|
- मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं|
भारत में मकर संक्रांति मनाने के तरीके
सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है| विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं.
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है|
इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है.
इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं| बहुएँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं| नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है.
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उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है|
इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है.
माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है| संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है| बागेश्वर में बड़ा मेला होता है| वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं.
इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है| इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है.
पुरे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है.
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बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं.
इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है| बिहार में मकर संक्रांति का महत्व का दूसरा नाम तिल संक्रांत है.
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं| तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है.
लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं – “लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला” अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो.
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है.
यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है| मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था.
इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है| लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं| वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है- “सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार”।
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं|
प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल कहा जाता है.
इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है.
पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं.
इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है.
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं| मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं.
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं| साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं.
इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है| मकर संक्रान्ति का यह त्यौहार भारत के नजदीकी देश नेपाल में भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है.
नेपाल में मकर संक्रांति का महत्व और निबंध
मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं| इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है.
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मकर संक्रांति का महत्व के बारे में जितना बताऊ उतना कम है| आशा है आपको यह लेख अच्छा लगा हो और इस लेख में आपको काफी रोचक जानकारिया भी मिली होंगी.
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Awesome post,
Brother me apne blog me Yehi theme use kar raha hu, but menubar thoda niche ho gya hai, sahi kaise hoga,
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