संत रविदास जयंती 2018 – जीवनी, दोहे और उनकी रचनाएँ
संत रविदास जयंती : गुरु रविदास जी का जन्म काशी में हुआ था| उनका जन्म चर्मकार कुल में हुआ था.
उनके पिता जी का नाम संतोख दास और माता का नाम कलसा देवी था| गुरु रविदास साधु संतो के साथ रहकर पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया.
उनके पिता जी का जुते बनाने का काम था जिसमे वे अपने पिता जी की पूरी मद्त किया करते थे.
गुरु रविदास अपने सभी काम पूरी लग्न और महनत से किया करते थे और वे हमेशा अपने सभी कार्य समय से पुरे किया करते थे.
उनकी समयनुपालन की परवर्ती और मधुर व्यवहार के कारण सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न हुआ करते थे.
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संत रविदास जयंती 2018 की जानकारी हिंदी में
गुरु रविदास प्रारम्भ से ही बहुत परोपकारी थे उनका स्वभाव अत्यंत दयालु था और वे हमेशा साधु संतो की सेवा के लिए तत्पर रहते थे| उनके इस स्वभाव से उनके माता पिता खुश नहीं थे.
कुछ समय बाद उनके माता पिता ने उन्हें अपने घर से निकाल कर उन्हें अलग कर दिया| गुरु रविदास ने पड़ोस में ही अपने लिए एक झोपडी बनाई और शांति पूर्वक वहाँ रहने लगे.
रविदास जी तत्परता से अपने व्यवसाय को किया करते थे और शेष समय ईश्वर की भक्ति और भजन कीर्तन में व्यतीत किया करते थे .
गुरु रविदास की जीवन की छोटी छोटी घटना से तथा समय और वचन की पालन सम्बन्धी उनके गुणों का पता चलता है|
एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे| गुरु रविदास की एक शिष्य ने उनसे चलने का आग्रह किया तब गुरु रविदास बोले:-
में गंगा स्नान हेतु अवश्य जाता परन्तु मेने आज एक व्यक्ति को जुते बनाकर देने का वादा किया है| अगर आज में उस व्यक्ति को जुते ना दे सका तो वचन टूट जायेगा और यदि में गंगा स्नान क़े लिए चला भी गया तो मन में यही लगा रहेगा| तो फिर पुण्य कैसे प्राप्त होगा?
“मन जो काम करने क़े लिए उचित रूप से त्यार हो वही काम करना चाइये” कहा जाता है इसके बाद यही प्रथा चल गयी थी – मन चंगा तो कठोती में गंगा !
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संत रविदास का जीवन परिचय
रविदास जी ने उच्च नीच की भावना तथा ईश्वर की भक्ति क़े नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन बताया तथा सभी को परस्पर मिलजुल कर रहने का उपदेश दिया.
गुरु रविदास अपने आप बहुत सुन्दर और भक्ति पूर्ण भजन लिखा करते थे तथा वे भजनो को भाव – विभोर होकर सुनते थे.
उनका विश्वास था की राम, कृष्ण, करीम आदि सब एक ही ईश्वर है एक ही ईश्वर क़े विभिन्न नाम है| उनका मानना था की वेद, कुरान, आदि सभी ग्रंथो में परमेश्वर का गुणगान किया गया है.
गुरु रविदास का कहना है की ईश्वर की भक्ति क़े लिए सदाचार, परहित भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अतिआवश्यक है| अभिमान को त्याग कर तथा दुसरो क़े साथ विनम्रता से व्यवहार करने की सलाह देना गुरु रविदास को बहुत अच्छा लगता था| उन्होंने शिष्टता क़े गुणों का विकास करने पर सबसे अधिक जोर दिया.
उनके विचारो का आशय यह है की ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है जो व्यक्ति अपने अभिमान को शून्य रखता है वह व्यक्ति जीवन क़े प्रत्येक मार्ग पर सफलता पाता है.
जैसे की एक विशाल हाथी चीनी क़े कणो को चुनने को चुनने में असमर्थ रहता है| वही एक छोटी सी चींटी उन चीनी क़े दानो को उठाने में समर्थ रहती है इस प्रकार अभिमान और बड्डपन का भाव त्याग कर विनम्रता पूर्वक व्यवहार करने वाला व्यक्ति ही ईश्वर का भक्त हो सकता है.
उनकी वाणी का समाज पर इतना व्यापक प्रभाव पड़ा की समाज क़े सभी वर्गो क़े लोग उनके प्रती दयालु बन गए| ऐसा कहा जाता है की मीराबाई भी उनसे बहुत प्रभावित थी और मीराबाई गुरु रविदास की शिष्य बन गयी थी.
एक दिन की बात है सभी नीची जाती क़े लोग रविदास जी क़े दरबार में बैठे थे सत्संग चल रहा था तब एक व्यक्ति ने गुरु रविदास से कहा की ऊँची जाती क़े लोग हमसे घृणा करते है| हमे खुद से दूर भगाते है की भगवन क़े घर तो हर किसी को बराबर माना जाता है फिर हमारे साथ ऐसा क्यों होता है| यह बात सुनकर गुरु रविदास “वैराग्य” में आ गए और अपनी वाणी से उन्होंने यह उच्चारण किया.
संत रविदास के दोहे अर्थ सहित हिंदी में
बिलावलु ॥
जिह कुल साधु बैसनौ होइ ॥
बरन अबरन रंकु नही ईसुरु बिमल बासु जानीऐ जगि सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
ब्रह्मन बैस सूद अरु ख्यत्री डोम चंडार मलेछ मन सोइ ॥
होइ पुनीत भगवंत भजन ते आपु तारि तारे कुल दोइ ॥१॥
धंनि सु गाउ धंनि सो ठाउ धंनि पुनीत कुट्मब सभ लोइ ॥
जिनि पीआ सार रसु तजे आन रस होइ रस मगन डारे बिखु खोइ ॥२||
पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबरि अउरु न कोइ ॥
जैसे पुरैन पात रहै जल समीप भनि रविदास जनमे जगि ओइ ॥३॥२॥
इसका यह अर्थ है की
“जिस कुल में भक्ति करने वाला व्यक्ति होता है चाहे वह किसी भी कुल का हो उस व्यक्ति की जाती या कुल कभी भी कंगाल नहीं होती| वह राम का नाम जानकर अर्थार्त ईश्वर रूप को पहचानकर यानी नाम धन पाकर धनि बन जाता है| वह दुनिया में एक अच्छे व्यक्ति क़े रूप में जाना जाता है चाहे वह ब्राह्मण हो चाहे वह क्षत्रिय हो वह परमात्मा का नाम जपने पर पुनीत हो जाता है| वह आप भी तरता है और अपने कुल को भी तार लेता है.
जिस नगर में वह व्यक्ति होता है वह नगर भी धन्य होता है| जिसने नाम रस पीया उसने दुनियाँ के सारे फीके रस छोड़ दिए हैं और नाम रस में मगन होकर विषय-विकार त्याग दिए यानि दूर फैंक दिया है|
पण्डित, सूरमा, तखत का मालिक राजा, यह सारे भक्ति करने वाले दर्जे पर नहीं पहुँच सकते। यानि इनका बल चँद दिन अपने सिर के साथ ही है। परमात्मा की दरगह में कोई इन्हें पहचानता भी नहीं है, जहाँ भक्त के मुख ऊजल होते हैं।
जिस प्रकार कमल का फूल पानी में रहते हुए भी पानी में लोप नहीं होता। इसी प्रकार से भक्त भी सँसार में रहते हुए भी सँसारी कर्मों से निरलेप रहते हैं। रविदास जी कहते हैं कि जगत में जन्म लेना ही उनका सफल है। बाकी अहँकार में आए और खाली हाथ झाड़कर चले गए।”
इस प्रकार गुरु रविदास ने सभी क़े मन से जात पात का भेदभाव निकाल कर लोगो को एक नए मार्ग पर चलाया| गुरु रविदास क़े इस कथन क़े बाद से सभी व्यक्तियों क़े मन में उनके लिए और अधिक प्रेम भावना बढ़ गयी थी| उन्हें सब गुरु बुलाने लगे और इस प्रकार रविदास जी गुरु रविदास कहलाये.
मुझे उम्मीद है की संत रविदास जयंती के इस लेख में आपको पूरी जानकारी मिली होगी| अगर आपको लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें| और कमेंट के माध्यम से अपने विचार हमारे साथ शेयर करें.
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आपने तो संत रविदास जी के बारे में हर जानकारी दे दिये है उसके लिए धन्यबाद
Bahut sundar dohe hain. Thanks for sharing.
bhut badiya bhi hame kuch gyan dene ke liye dhnybaad aapka
मेरा नाम संदीप है
और मैं आप लोगों की वेबसाइट को हमेशा फॉलो करता हूं
मुझे उम्मीद है कि आप आगे भी अच्छी-अच्छी चीजें लाते रहेंगे
सटीक शब्दोंमें काफी अच्छा जीवन परिचय करवाया है आपने। आपका धन्यवाद। रविदास जी की रचनाएं अगर साथ पढ़ने मिलती तो और मजा आता।
खैर, समाज के एकीकरण में और समानता के लिए जिन संतोंने प्रयत्न किए उनका एक ही कहना था कि आदमी को आदमी जैसा समझे और वैसा रवैया अपनाए, जो आज की तारीख में नहीं होता। अब तो बस दूसरों को नीचा दिखाने की होड़ लगी है। कभी कभी हताशा होती है के क्या ये वही भारत भू है जिसमें इतने सारे संत महात्मा हुए जो समानता का पाठ पढ़ाते रहे।
धन्यवाद