राजस्थान के मेहरानगढ़ किले का इतिहास – History Of Mehrangarh Fort in Hindi
वैसे तो भारत देश में एक से बढ़ के एक किले है, लेकिन मेहरानगढ़ का किला भारत के ऐतिहासिक किलों में से एक अनोखा किला है| आइये आज मेहरानगढ़ किले का इतिहास जानते हैं कि कैसे यह भारत के बाकी किलो से अनोखा है ?
मेहरानगढ़ का किला भारत के समृद्धशाली होने के अतीत को बताता है, यह किला जोधपुर के स्थित सभी किलों में से सबसे बड़े किलों में से एक है| और आज हम इसी मेहरानगढ़ किले के बारे में जानेंगे.
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जोधपुर मेहरानगढ़ किले का इतिहास हिंदी में
स्थान : |
जोधपुर, राजस्थान (भारत)
|
निर्माण : | 12 मई 1459 |
निर्माता : | राव जोधा |
प्रकार : | किला |
मेहरानगढ़ किला भारत के राज्य राजस्थान के जोधपुर शहर में स्थित है और भारत के विशाल किलों में यह गिना जाता है.
इसका निर्माण 12 मई 1459 में राव जोधा ने किया था, यह किला शहर से 410 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और मोटी दीवारों से संलग्नित है.
इस महल की सीमा के अंदर बहुत सारे पैलेस है जो विशेषतः जटिल नक्काशी और महंगे आँगन के लिये जाने जाते है| जैसे कि- मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि.
जैसे आमेर के किले में जाने के लिए शहर के निचले भाग से घुमावदार रास्ता बनाया हुआ है ठीक वैसे ही इस किले के अंदर आने के लिये भी एक घुमावदार रास्ता भी है.
इस किले के बायीं तरफ किरत सिंह सोडा की छत्री है, जो एक सैनिक था और जिसने मेहरानगढ़ किले की रक्षा करते हुए अपनी जान गवा दी थी.
मेहरानगढ़ किले का इतिहास – मेहरानगढ़ फोर्ट की विशेषता
इस किले के अंदर जाने एवं बाहर आने के लिए कुल सात दरवाजे है, जिनमे जयपाल (अर्थ – जीत) गेट भी है, जिसे महाराजा राजा मान सिंह ने जयपुर और बीकानेर की सेना पर मिली जीत के बाद बनाया था.
ठीक उसी तरह से ही फत्तेहपुर (अर्थ – जीत) गेट का निर्माण महाराजा अजित सिंह ने मुगलो की हार की याद में बनाया था.
जयपुर के सैनिकों द्वारा इस किले पर तोप के गोलों द्वारा आक्रमण किया गया था, जो कि आज भी हमें देखने को मिलता है, किले पर पाए जाने वाले हथेली के निशान आज भी हमें आकर्षित करते है.
जिस प्रकार मेहरानगढ़ का किला अपने खास होने कि वजह से बहुत प्रसिद्ध है ठीक उसी तरह से किले का म्यूजियम भी राजस्थान के बेहतरीन और सबसे प्रसिद्ध म्यूजियम में से एक है.
किले के म्यूजियम के एक विभाग में पुराने शाही पालकियो को रखा गया है, जिनमे विस्तृत गुंबददार महाडोल पालकी को भी संभाल के रखा गया है, जिन्हें 1730 में गुजरात के गवर्नर से युद्ध में जीता गया था.
यह म्यूजियम हमें राठौर की सेना, पोशाक, चित्र और डेकोरेट कमरों की विरासत को भी दर्शाता है| राठौड़ वंश के मुख्य राव जोधा को भारत में जोधपुर शहर के निर्माण का श्रेय दिया जाता है.
1459 में उन्होंने जोधपुर (जिसको प्राचीन समय में जोधपुर मारवाड़ के नाम से भी जाना जाता था) की खोज की थी| रणमल के 24 पुत्रों में से थे और 15 वे राठौड़ शासक बने.
उनके सिंहासन मिलने के एक साल बाद, जोधा ने अपनी राजधानी को जोधपुर की सुरक्षित जगह पर स्थापित करने का निर्णय लिया, क्योकि उनके अनुसार हजारो साल पुराना मंडोर किला उनके लिये अब ज्यादा सुरक्षित नही रहा था.
भरोसेमंद सहायक राव नारा (राव समरा के बेटे) के सहायता से 1 मई 1459 को किले के आधार की नीव जोधा द्वारा मंडोर के दक्षिण से 9 किलोमीटर दूर चट्टानी पहाड़ी पर रखी गयी| इस पहाड़ी को भौर्चीरिया, पक्षियों के पहाड़ के नाम से जाना जाता था.
लीजेंड के अनुसार, किले के निर्माण के लिये उन्होंने पहाडियों में मानव निवासियों की जगह को नष्ट कर दिया था| चीरिया नाथजी नाम के सन्यासी को पक्षियों का भगवान भी कहा जाता था|
बाद में चीरिया नाथजी को जब पहाड़ो से चले जाने के लिये जबरदस्ती की गयी तब उन्होंने राव जोधा को शाप देते हुए कहा, “जोधा! हो सकता है कभी तुम्हारे गढ़ में पानी की कमी महसूस होंगी।”
राव जोधा सन्यासी के लिए घर बनाकर उनकी तुष्टि करने की कोशिश कर रहे थे| साथ ही सन्यासी के समाधान के लिए उन्होंने किले में गुफा के पास मंदिर भी बनवाए, जिसका उपयोग सन्यासी ध्यान लगाने के लिये करते थे| लेकिन फिर भी उनके शाप का असर आज भी हमें उस क्षेत्र में दिखाई देता है.
हर 3 से 4 साल में कभी ना कभी वहाँ पानी की जरुर होती है|
राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी| चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है| राव जोधा ने 1560 मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की| मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे.
चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं|
नवरात्रि के दिनों में यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है| मेहरानगढ़, राजस्थानी भाषा उच्चार के अनुसार, मिहिरगढ़ बदलकर ही बाद में मेहरानगढ़ बन गया, सूर्य देवता ही राठौड़ साम्राज्य के मुख्य देवता थे.
किले का निर्माण वास्तविक रूप से 1459 में राव जोधा ने शुरू किया था, जो जोधपुर के निर्माता है.
जोधपुर में मेवाड़ के जसवंत सिंह (1638-78) के समय के किले आज भी दिखाई देते है। लेकिन मेहरानगढ़ किला शहर के मध्य में बना हुआ है और पहाड़ की ऊँचाई पर 5 किलोमीटर तक फैला हुआ है|
इसकी दीवारे 36 मीटर ऊँची और 21 मीटर चौड़ी है, जो राजस्थान के ऐतिहासिक पैलेस और सुंदर किले की रक्षा किये हुए है.
इस किले में कुल सात दरवाजे है| जिनमे से सबसे प्रसिद्ध द्वारो का उल्लेख मैंने आपके लिए निचे किया है, क्यूंकी यह सरकारी परीक्षा मे पूछा जा सकता है.
मेहरानगढ़ किले का इतिहास – Mehrangarh Fort History in Hindi
- जय पोल (विजय का द्वार), इसका निर्माण महाराजा मान सिंह ने 1806 में जयपुर और बीकानेर पर युद्ध में मिली जीत की ख़ुशी में किया था|
- फ़तेह पोल , इसका निर्माण 1707 में मुगलों पर मिली जीत की ख़ुशी में किया गया|
- डेढ़ कंग्र पोल, जिसे आज भी तोपों से की जाने वाली बमबारी का डर लगा रहता है|
- लोह पोल, यह किले का अंतिम द्वार है जो किले के परिसर के मुख्य भाग में बना हुआ है। इसके बायीं तरफ ही रानियो के हाँथो के निशान है, जिन्होंने 1843 में अपनी पति, महाराजा मान सिंह के अंतिम संस्कार में खुद को कुर्बान कर दिया था|
जैसा कि मैंने ऊपर भी बताया कि इस किले के भीतर बहुत ही बेहतरीन चित्रित और सजे हुए महल है| जिन में मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना और दौलत खाने भी है| साथ ही किले के म्यूजियम में पालकियो, पोशाको, संगीत वाद्य, शाही पालनो और फर्नीचर को जमा किया हुआ है.
किले की दीवारों पर तोपे भी रखी गयी है, जिससे इसकी सुन्दरता को चार चाँद भी लग जाते है|
यदि आपको मौका मिले तो आप छुट्टियों मे एक बार वहाँ ज़रूर जाये, यकिनन ही आपको मेहरानगढ़ के किले कि तस्वीर से सुंदर किला ही देखने को मिलेगा.
मेहरानगढ़ किले का इतिहास – Interesting Facts About Mehrangarh Fort in Hindi
मेहरानगढ़ किले के बारे में रोचक तथ्य जो शायद आपको न पता हो|
- राजस्थान के प्रसिद्ध शहर जोधपुर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर यह किला स्थित है.
- साथ द्वार (पोल) व अनगिनत बुर्जों से मिलकर इस किले का निर्माण हुआ है.
- जोधपुर के प्रसिद्ध कारीगरों ने इस किले को बनाने में जिस आकर्षक बहुआ पत्थर का उपयोग हुआ है उस पर उन्होंने अपनी शानदान शिल्पकारी का प्रदर्शन किया है.
- मेहरानगढ़ किले की चोड़ाई 68 फीट है और इसकी ऊंचाई 117 फीट है.
- किले के अंदर आपको एक पोल गेट देखने को मिलेगा जिसे महाराजा मान सिंह ने बीकानेर और जयपुर की सेनाओं पर अपनी जीत की खुशी में सन् 1806 में बनवाया था.
- अब इस किले के अन्दर के एक हिस्से को संग्रहालय में बदल दिया गया है, जहाँ पर शाही पालकियों का एक बड़ा समावेश देखने को मिलता है.
- शाही हथियारों, गहनों और वेशभूषाओं से सजे इस संग्रहालय में 14 कमरे हैं.
- यहाँ आने वाले यात्री किले के भीतर बने मोती महल, फूल महल, शीश महल और झाँकी महल जैसे चार कमरे को भी देख सकते हैं.
- राव जोधा ने 1460 ई. में इस किले के नजदीक एक चामुंडा माता के मंदिर का निर्माण करवाया था और वहां मूर्ति की स्थापना की| चामुंडा माता को जोधपुर के शाशकों की कुलदेवी माना जाता है.
अब इस लेख का अंत में यही पर कर रहा हूँ| उम्मीद है की आपको मेहरानगढ़ किले का इतिहास के बारे में जानकारी मिल गई होगी.
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आपको इस लेख में बाकी किला से खास क्या जानने को मिला ? हमे कमेंट करके बताना मत भूलिएगा|
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