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गंगापुत्र भीष्म पितामह की कहानी

गंगापुत्र भीष्म पितामह की कहानी – सम्पूर्ण जीवन परिचय

आज हम आपको महारभारत के एक प्रचलित धरोहर गंगापुत्र भीष्म पितामह के बारे मे जानने को मिलेगा| आइये जानते हैं भीष्म पितामह की कहानी को|

सबसे पहले हम जानते हैं भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी 16 रहस्य जिसके माध्यम से आपको उनके जीवन की सभी बातो का ज्ञात हो जाएगा| तो चलिये शुरू करते हैं:-

सम्पूर्ण महाभारत ⇓

भीष्म पितामह कौन थे ? – रहसय 1

यह महाभारत का वह काल था जब देवी और देवता धरती पर ही विचरण किया करते थे| किसी खास मंत्र के आवाहन करने पर वो प्रकट हो जाया करते थे|

देवताओ में मुख्य इन्द्र, वरुण, दो अवश्वनी कुमार, 12 आदित्य गण, 11 रुद्र, सूर्य मित्र, विष्णु, शिव, सती, सरस्वती, लक्ष्मी, उषा, सविता, यौम, मृत्यु, श्रद्धा, सचिव, द्रोणाचार्य आदि थे|

उन्ही में से एक माँ गंगा भी थी| आइये जानते हैं कि माँ गंगा ने राजा शानतु से विवाह क्यों किया था ?

भीष्म पितामह की कहानी – Bhishma Pitamah Information in Hindi

राजा शानतु और उनकी आठवी पत्नी जिनका नाम गंगा था, उनकी शादी एक वचन के आधार पर हुई थी (राजा शानतु ने गंगा को दिया था) की शादी के बाद रानी गंगा हमेशा अपने मन का ही करेंगी राजा शानतु उनको कभी रोकेंगे या टोकेंगे नहीं.

  • रहस्य 2 – भीष्म पितामह का जन्म की कथा

शादी के बाद माँ गंगा को लगातार 7 पुत्र हुए, रानी उन सब को बहती गंगा नदी में डाल देती थी और राजा को यह बात पाता होने के बावजूद वो वचन की वजह से कुछ बोल ना सके.

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जब उनका आठवा पुत्र हुआ तो फिर रानी वही गंगा नदी की और बच्चे को लेकर जाने लगी और तभी राजा शानतु ने उनको देखा और उनसे रुका नहीं गया और उन्होने उनको रोक लिया.

राजा शानतु ने उनको आवाज दी और फिर वो रुक गई, परंतु उन्होने राजा को याद दिलाते हुए बोला की राजन आपने अपना वचन तोड़ दिया और अब इस वजह से मै आपके साथ नही रेह सकती.

वो अपने पुत्र को छोर वहाँ से तुरंत अंतर्भूत हो गई, राजा शानतु ने ही उनको पाला पोशा और अपने पुत्र का नाम देवव्रत रखा| पुत्र के 16 वर्ष के होने के बाद उन्होने उनको हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया|

  • रहस्य 3 – महाभारत में भीष्म पितामह की कहानी

एक बार द्यु नामक वसु ने अपने सात मित्रो के साथ मिलकर वशिष्ठ ऋषि के गौ को हरण कर लिया था, ऐसा करने पर उन्होने वसु को बोला था की ऐसा काम तो मनुष्य करते हैं| दंड स्वरूप उन्होने कहा की तुम आंठों वसु मनुष्य हो जाओ, ऐसा सुन कर उन वसुओ ने वशिष्ठ जी से प्रार्थना की और माफी मांगी.

माफी स्वीकार ना करते हुए वशिष्ठ जी ने कहा ⇒ बाकी सभी वसु तो साल का अंत होने पर मेरे साथ से छुटकारा पा लेंगे लेकिन इस द्यु को इसकी करनी का फल ज़रूर मिलेगा| इसको एक जन्म मनुष्य बन कर पीड़ा से गुजारना होगा.

यह सुन कर उन्होने द्यु नामक वसु को यह बात बताई और कहा की आप एक मनुष्य रूप में जन्म लीजिये और फिर हम सभी को अपने गर्व में धारण कर पैदा होने के बाद उनको पानी में समा दीजियेगा और इसी तरह से हम सब जल्दी-जल्दी इससे मुक्त हो जाएंगे.

गंगा ने उनकी बात मान ली और फिर राजा शानतु से शर्त रख शादी भी कर ली थी| सात पुत्रों को तो उन्होने पानी में छोर दिया परंतु आठवे पुत्र के समय राजा ने उनको रोक कर उनको यह कहानी बता कर उनको रोक लिया और गंगा ने श्राप का मान रखते हुए उस बच्चे को जीवन दिया| (वो द्यु नामक वसु ही देवव्रत थे)

  • रहस्य 4 – गंगापुत्र भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा

एक दिन देवव्रत के पिता महाराज शानतु गंगा के तट पर घूम रहे थे, तभी उनकी नजर नदी में नाव को चलाती एक सुंदर कन्या पर पड़ी, राजा को वो पसंद आ गई और उन्होने उससे जा कर उनके बारे में पूछा| उस कानया ने अपना नाम सत्यवती बताया और कहा कि मै एक निषाध कन्या हूँ| (निषाध एक जाती का नाम था)

इतना जानते ही राजा उनके पिता के पास शादी का परस्ताव लेकर गए, सत्यवती के पिता ने कहा कि मुझे आपसे अपनी पुत्री का विवाह करने में कोई आपत्ति नहीं है, परंतु एक शर्त है और वो शर्त यह है कि मेरी पुत्री के गर्व से जन्म लिया हुआ आपका पुत्र ही आपके बाद हस्तीनपुर का राजा बनेगा.

यह सुन राजा चुप-चाप अपने राज्य हस्तीनपुर वापिस लौट आए, राजा सत्यवती की खूबसूरती के दीवाने थे और उनकी चिन्ता में वो कमजोर होने लगे.

जब देवव्रत को यह बात मालूम हुई तो वो अपने पिता को बिना बताए ही सत्यवती के घर जा कर यह प्रण लिया की मै जिन्दगी भर ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा और उनकी बेटी के गर्व से जन्म लिया पुत्र जो भी हस्तिनापुर का राजा बनेगा उसकी आज्ञा का पालन करूंगा.

ऐसा सुन सत्यवती के पिता ने अपनी पुत्री को युवराज देवव्रत और उनके सेनापति के साथ अपनी पुत्री को हस्तीनपुर के लिए रवाना कर दिया|

  • रहस्य 5 – भीष्म पितामह के जीवन का इतिहास

जब सत्यवती को शानतु ने अपने राज्य हस्तीनपुर में देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उन्होने अपने पुत्र को बोला की तुमने पिता के प्रेम में आ कर ऐसा फैसला लिया है और आज से पहले ना तो कभी ऐसा हुआ था और ना ही कभी होगा|

इसलिए मै आज तुम्हें ये वरदान देता हूँ की तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे चाहने से ही होगी अर्थात जब तुम चाहोगे तब ही तुम्हें मौत आएगी| तेरी इस प्रतिज्ञा के कारण तू भीष्म कहलाएगा और तेरी वो प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से प्रसिद्ध होगी.

  • रहस्य 6 – भीष्म पितामह की कहानी

रानी सत्यवती के गर्व से महाराज को 2 पुत्र की प्राप्ति हुई एक का नाम चित्रांगद था और दूसरा विचित्रवीर्य| कुछ समय बाद राजा शानतु कि मौत हो गई और फिर राजा के पद पर चित्रांगद को बैठाया गया, उनकी भी मृत्यु एक युद्ध में हो गई.

उन समय भीष्म ने विचित्रवीर्य को राजा के पद पर बैठा दिया और खूद हस्तीनपुर के बाकी कार्यो को देखने लगे क्यूंकि उस समय विचित्रवीर्य छोटे बालक थे| उन्ही दिनो भीष्म ने तीन राज्यो पर अपनी जीत की प्राप्ति कर ली थी और वो चाहते थे की वहाँ की तीन पुत्रियों से विचित्रवीर्य का विवाह हो जाये.

3 में से सबसे बड़ी पुत्री आंबा को छोर दिया गया क्यूंकी वो किसी और से प्रेम करती थी लेकिन बाकी दोनों पुत्री अंबिका और अंबालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ कर दिया गया| लेकिन दोनों में से किसी भी पत्नी से उनको पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई और वो भी चल बसे|

एक बार फिर हस्तिनापुर की राजगद्दी खाली हो गई|

  • रहस्य 7 – महाभारत में भीष्म और परशुराम का 21 दिन का युद्ध

जब अम्बा अपने प्रेमी के पास जाती है तो वो उसको स्वीकार करने से मना कर देते हैं और यह सुन वो भगवान परशुराम जी के पास झूठी कहानी बता कर अपने बारे में कुछ हल निकालने के लिए बोलती है| यह सुन वो उनके पास परस्ताव लेकर जाते हैं की वो अम्बा को स्वीकार कर उनसे विवाह करे|

भीष्म अपनी प्रतिज्ञा की वजह से विवाह नहीं कर सकते थे और इस वजह से उनकी 21 दिन तक परशुराम जी के साथ भयंकर युद्ध हुआ था| बाद में परशुराम जी को ऋषियों के द्वारा सत्य बताया गया और फिर उनका युद्ध समाप्त हुआ| और इस तरह वो अपनी बात पर अटल रहे.

  • रहस्य 8 – महर्षि वेदव्यास कौन थे – महर्षि वेदव्यास की कहानी

सत्यवती के दोनों पुत्रों की मृत्यु होने की वजह से वंश के आगे ना बढ़ने की वजह से परेशान होकर भीष्म से बोली की तुम विवाह कर लो, परंतु वो नहीं माने और तब उन्होने अपनी दो बहुओं का नियोग तरीके से संतान होने के बारे में सोचा|

भीष्म से आज्ञा लेकर सत्यवती अपने पुत्र वेदव्यास से अंबिका और अंबालिका के द्वारा दो पुत्रो को जन्म दिलवाती है, आगे चल कर उन्ही पुत्रों का नाम धृतराष्ट्र एवं पांडु नाम पड़ता है.

राजा शानतु से विवाह के पूर्व सत्यवती ने अपनी कुमारी अवस्था मे ऋषि प्रार्षद के साथ रहवास कर लिया था| उनसे उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिंका नाम वेदव्यास पड़ा था| और उसी पुत्र की मदद से उन्होने अपना वंश आगे बढ़ाया था.

  • रहस्य 9 – भीष्म पितामह की कहानी – महाभारत युद्ध

अपने पिता के विवाह के लिए भीष्म ने जो प्रतिज्ञा ली थी उसमे लीन रहने के लिए वो रोज़ भगवान शिव का ध्यान किया करते थे, वैसे तो श्री कृष्ण उनके सामने बच्चे थे परंतु फिर भी भीष्म ने उनको इंसान के रूप में पहचान लिया था|

उन्ही दिनो पांडवो और कौरवो में युद्ध होने के लिए सेना का निर्माण हो रहा था, भगवान श्री कृष्ण ने पहले ही अर्जुन को वचन दे दिया था की वो युद्ध के वक्त पांडवो की और रहेंगे और इस वजह से भीष्म पितामह ने उनसे उनका  शस्त्र ग्रहण करने के लिए कहा था|

भगवान श्री कृष्ण के लिए यह धर्म संकट की स्थिति बन गई थी और अंत में भक्त की लाज रखने के लिए उन्होने उनकी बात मान ली थी और अपने शस्त्र उनको सौंप दिये थे.

  • रहस्य 10 – Bhishma Pitamah Biography in Hindi

भीष्म कुरुक्षेत्र में होने वाले युद्ध में कौरवों के सेनापती थे और उन्होने अपनी जिम्मेदारों को बखूबी निभाते हुए उन्होंने 10 दिन तक कड़ी तरीके से युद्ध में अपना योगदान दिया था|

युद्ध के नौवे दिन उन्होने आधे से भी ज्यादा पांडव सेना को समाप्त कर दिया था| इस बात श्री कृष्ण ने अपना वचन तोड़ दिया और अपने रथ का पहिया निकाल के वो भीष्म की और उनको मारने के लिए चल पड़े थे, परंतु फिर उन्होने देखा की भीष्म ने भी अपने शस्त्र छोर दिये हैं और वो उन्ही की और बड रहे हैं तो वह रूक गए.

दसवे दिन भगवान श्री कृष्ण ने पांडवो को खूद कहा की जाओ भीष्म के पास और उनसे उनके इच्छा मृत्यु का तरीका पूछ के आओ, बहुत देर तक सोचने के बाद भीष्म पितामह उनको बता देते हैं.

  • रहस्य 11 – महाभारत में भीष्म पितामह की मृत्यु कैसे हुई ?

युद्ध के दसवे दिन अर्जुन ने युद्ध के वक्त भीष्म पितामह के सामने शिखंडी को ला कर खड़ा कर देते हैं और तभी अर्जुन मौका देख के भीष्म पितामह पर तीरो की बरसात कर उनको तीरो की चित्ता पर लिटा देता हैं.

दरअसल भीष्म से पांडवो द्वारा पूछे जाने पर भीष्म ने बताया था की किसी नपुंसक व्यक्ति के सामने वो अपने शस्त्र नहीं उठाएंगे और तभी अर्जुन ने मौका का फाइदा उठाया और भीष्म को तीरो से छेद देते हैं.

  • रहस्य 12 – भीष्म की मृत्यु

भीष्म के सर-सइयाँ पर लेटने की खबर फैलने पर कौरवों की सेना में हाहाकार मच जाता है| दोनों तरफ के सैनिक और युवराज युद्ध को छोर उनके आस पास जा के बैठ जाते हैं.

तभी भीष्म कहते हैं मेरा सिर लटक रहा है, मुझे तकिया चाहिए और उनके यह बोलते ही पूरे एक से बढ़ एक अच्छे तकिये उनके लिए लाये जाते हैं परंतु वो उन सभी तकियों को लेने से माना कर देते हैं|

तभी वो अर्जुन की और देख कर बोलते हैं => बेटा, तुम तो क्षत्रिय धर्म के विद्वान हो, क्या तुम मुझे उपयुक्त तकिया दे सकते हो ?

अर्जुन की आंखो में उस वक्त आँसू भरे हुए थे, लेकिन आज्ञा का पालन करते हुये अर्जुन ने बड़ी तेज़ी के साथ 3 तीर उनके निरार को चीरते हुए जमीन में गुस्सा कर चला दिया और इस तरह भीष्म को सिरहाना मिल जाता है.

  • रहस्य 13

सर-सईया पर लेटने के बावजूद भीष्म मरते नहीं हैं, उनको पिता के द्वारा जो इच्छा मृत्यु का वरदान उनको मिला था उसकी वजह से वो अभी भी जीवित थे|

उन्हे पता था की सूर्य के उत्तरायण होने पर वो अगर वो शरीर को छोरेंगे तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी|

किसी के पूछे जाने पर वो शरीर को ना छोरेंगे के पीछे की वजह को बताते हुये बोलते हैं कि आज का सूर्य उत्तरायण हो चुका है और मै अब नहीं छोर सकता अपने शरीर को|

  • रहस्य 14 – भीष्म पितामह की कहानी

भीष्म की वो हालत देख वहाँ चिकित्सालय का इंतजाम किया जाता है, परंतु भीष्म उन सब को वापस भेज कहते हैं की मेरा अब अंतिम समय आ चुका है| अगली सुबह जब सभी उनके समक्ष आ कर खड़े होते हैं तो भीष्म शीतल जल की इच्छा करते हैं, तभी सब उनके लिए पानी लाते हैं परंतु वो उनको पीने से मना कर देते हैं और फिर अर्जुन की और देखने लगते हैं.

अर्जुन समझ जाते हैं और पृथ्वी में एक तीर चला कर अमृत के समान शीतल जल की व्यवस्था करते हैं और उसको पी कर भीष्म प्रसन्न हो जाते हैं|

भीष्म के कई बार समझाने पर वो अपनी दशा का कारण पांडवो और श्री कृष्ण को बताते हुये बोलते हैं कि युद्ध छोर दो परंतु दुर्योधन उनकी एक नहीं सुनता और फिर से युद्ध आरंभ कर देता है|

  • रहस्य 15 – महाभारत की समाप्ति

भगवान श्री कृष्ण के कहने पर भीष्म युधिष्ठिर से बात कर उनको समझाते हैं की आत्मग्लानि मत करो| अगली सुबह जब दुबारा सब भीष्म के पास जाते हैं तब भीष्म कहते हैं ⇒ मुझे यहाँ इस सर- साइया पर लेटे आज 58 दिन हो चुके हैं|

अब मै इस शरीर से मुक्ति लेना चाहता हूँ, और फिर वो सब से प्रेम और निष्ठा की बात कर अपने शरीर को छोर जाते हैं| उनके जाने के बाद सब रोने लगते हैं और उनका अंतिम संस्कार किया जाता है.

  • रहस्य 16 – भीष्म पितामह की कहानी

भीष्म पितामह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे, वो मनुष्य के रूप मे देवता वसु थे, कड़ी तपस्या के बाद उन्होने अपने शरीर को योग की मदद से पुष्य कर लिया था|

मृत्यु के वक्त भीष्म पितामह 150 वर्ष के थे और उस समय उतनी उम्र होना आम बात हुआ करती थी, महारिशी वेदव्यास जी ने महाभारत में भीष्म पितामह का उल्लेख राजनीति के तौर पर हर जगह किया है क्यूंकी उनको राजनीति की बहुत जानकारी थी.

मै इस लेख को यही पर अंत कर रहा हूँ, आशा करता हूँ आज का यह लेख आपको अच्छा लगा हो आपको इस लेख से बहुत तरह की नई जानकारी प्राप्त हुई होगी|

मुझे उम्मीद है भीष्म पितामह की कहानी पढ़ने के बाद आप अपने विचार कमेंट बॉक्स में कमेंट करके मेरे साथ जरूर शेयर करेंगे| धन्यवाद

आईये, अंत में लेख समाप्त करने से पहले महाभारत के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य के विषय में चर्चा कर लेते है| यह चर्चा आपकी जनरल नॉलेज को बढ़ाएगी.

प्रशन 1 : भीष्म पितामह के पिता कौन थे ?
उत्तर : भीष्म के पिता हस्तिनापुर के राजा महाराजा शांतनु थे |

प्रशन 2 : भीष्म पितामह की माता कौन थी ?
उत्तर : भीष्म की माँ का नाम गंगा था |

प्रशन 3 : भीष्म पितामह के सारथी कौन थे ?
उत्तर : कर्ण के पिता महाराज भीष्म के सारथी अधिरथ थे

प्रशन 4 : भीष्म पितामह के गुरु कौन थे ?
उत्तर : भगवान परशुराम |

प्रशन 5 : देवव्रत का नाम भीष्म कैसे पड़ा ?
उत्तर : देवव्रत की अखंड प्रतिज्ञा को देखकर उनका नाम भीष्म पड़ा |

प्रशन 6 : देवव्रत कौन था ?
उत्तर : देवव्रत, महाराजा शान्तु और माँ गंगा के पुत्र थे जिनका नाम बाद में भीष्म पड़ा |

प्रशन 7 : भीष्म पितामह का असली नाम क्या था ?
उत्तर : भीष्म का असली नाम देवव्रत था |

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