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Balance Sheet in Hindi

How To Read Balance Sheet in Hindi on Moneycontrol

शीर्षक : How To Read Balance Sheet in Hindi on Moneycontrol.

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि बैलेंस शीट क्या होती है, Balance sheet kya hai और मनीकंट्रोल पर बैलेंस शीट कैसे पढ़े अथवा कैसे समझे।

Balance Sheet क्या है – What is Balance Sheet in Hindi

फाइनेंसियल स्टेटमेंट का एनालिसिस (Financial Statement Analysis), फंडामेंटल एनालिसिस (Fundamental Analysis in Hindi) का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

दुनिया के सबसे सफल इन्वेस्टर (Mr. Warren Buffett) कहते हैं कि जब तक आप फाइनेंसियल स्टेटमेंट को पढ़ना और इंटरप्रेट करना नहीं सीखते हो तब तक आपको खूद स्टॉक नहीं चुनने चाहिए|

हर कंपनी अपने स्टेटमेंट हर 3 महीने में डिक्लेयर करती है, और फाइनेंशियल ईयर खतम होने के बाद एनुअल रिपोर्ट भी तैयार करती है|

यानी एक साल में एक कंपनी कुल 4 बार स्टेटमेंट डिक्लेय करती है|

महत्वपूर्ण बात : भारत में फाइनेंशियल ईयर 1 अप्रैल से शुरू होता है और 31 मार्च को खत्म होता है| इंग्लिश में 3 महीने के इस पीरियड को Quarter कहा जाता है| नीचे मैं क्वार्टर को इंग्लिश शब्द Q से बताऊंगा|

  • Q1 – 1 April » 30 June
  • Q2 – 1 July » 30 September
  • Q3 – 1 October » 31 December
  • Q4 – 1 January » 31 March

यदि आप स्टॉक मार्केट में नये हो, आप अपना पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश करना चाहते हो| परन्तु आपके पास डीमैट खाता नही है तो आप नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करके अपना new new demat account open कर सकते हो|

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बैलेंस शीट पढ़ना सीखें – Information About Balance Sheet in Hindi

यदि आप शेयर बाजार में निवेश करते हो तो आपको बैलेंस शीट के बारे में पता होना अत्यंत आवश्यक है कि बैलेंस शीट कैसे पढ़ते है, कंपनी को एनालाइज कैसे करे इत्यादि|

अगर आपने अपना मन बना लिया है कि आपको शेयर मार्केट में निवेश करना है तो सबसे पहले आप Stock Exchange में लिस्टेड किन्हीं चार या पांच कंपनियों की बैलेंस शीट moneycontrol.com या किसी अन्य वेबसाइट पर जाकर प्राप्त कीजिये और उन्हें पढ़ने अथवा समझने की कोशिश कीजिये|

नोट : आप कंपनी की बैलेंस शीट को अच्छे से पढ़े और समझने का प्रयास करें| अगर आपको लगे की आप बैलेंस शीट नही समझ पा रहे तो आप अपने पैसे को जल्दी शेयर बाजार में निवेश न करे, थोडा सब्र करे|

HimanshuGrewal.com पर हम आपको बैलेंस शीट क्या है और Balance Sheet Kaise Padhe के बारे में बतायेंगे|

आइये सबसे पहले हम Balance Sheet Meaning in Hindi का मतलब समझते है की बैलेंस शीट को हिंदी भाषा में क्या बोलते है ?

इसे भी पढ़े: इन स्टॉक मार्किट कोट्स को पढ़कर बने महान निवेशक (Stock Market Quotes)

What is the Meaning of Balance Sheet in Hindi

बैलेंस शीट को हिंदी में “तुलन पत्र या चिट्ठा” कहा जाता है| मैं जनता हूँ ये शब्द हिंदी में सुनने में थोडा अजीब लग रहा है इसलिए इस लेख में मैं इसको balance sheet के नाम से ही बोला करूंगा|

इस लेख में आपके सामने बहुत से तकनीकी शब्द आयेंगे जो शायद आपने पहले कभी न सुने हो| पर मैं काफी आसान शब्दों में आपको समझाने का प्रयत्न करूंगा|

बैलेंस शीट की परिभाषा हिंदी में – Definition of Balance Sheet in Hindi

बैलेंस शीट के दो भाग होते हैं-

  1. Liabilities
  2. Assets

यदि आसान शब्दों में समझे तो कंपनी के पास जो कुछ भी अपना है, जैसे- बिल्डिंग, ऑफिस, पर्सनल गाड़ियां, बैंक में मौजूदा कुछ राशि तो वो कंपनी का एसेट्स है|

लेकिन वही अगर कंपनी ने अपनी बिल्डिंग या ऑफिस बनाने के लिए बैंक से लोन लिया है, उस कंपनी के पास जो गाडियां हैं यदि वो EMI पर ली गई है तो और इसके साथ ही यदि कंपनी अपने खर्चो के लिए कही से पैसे उधार लेती है तो वो सब कुछ लियाबिलिटी (देनदारियां) में गीना जाएगा|

Difference Between Assets and Liabilities in Hindi

Difference Between Assets and Liabilities
Source: wikiHow

यदि हम सिंपल भाषा में बोलें जिस भी किसी माध्यम से कंपनी में पैसा आता है वो लियाबिलिटी में आएगा और जिस भी माध्यम से कंपनी का पैसा कही बाहर किसी और सोर्स में इस्तेमाल किया जाता है वो सब एसेट्स में गीना जाता है|

How To Read Balance Sheet on Moneycontrol in Hindi

Moneycontrol.com की वेबसाइट पर किसी भी कंपनी के बैलेंस शीट को जाचने के लिए आप वेबसाइट के टॉप पर (सर्च बॉक्स में) उस कंपनी के नाम को लिख कर सर्च कीजिये|

How To Read Balance Sheet on Moneycontrol in Hindi

कंपनी का नाम लिखने के बाद सर्च करने पर आप एंटर दबा दीजिए और फिर अगला पेज खुलेगा वहाँ आपको दाएँ तरफ FINANCIALS का ऑप्शन दिखेगा उस पर क्लिक कर के आप उस कंपनी का पढ़ना शुरू कर सकते हैं|

How To Read Balance Sheet in Hindi

Moneycontrol Par Balance Sheet Kaise Dekhe

Moneycontrol website में कुछ ऑप्शन इस प्रकार हैं:-

1. Shareholder’s Fund

कंपनी अपने शेयर्स को बेच कर शेयर होल्डर से जो पैसा कमाती है इसके साथ ही शेयर होल्डर को डिविडेंड (dividend) देने के बाद कंपनी के द्वारा पाया गया मुनाफा ये सब शेयर होल्डर फंड में गिना जाता है|

अब सवाल यह उठता है, कि कंपनी के द्वारा शेयर होल्डर से शेयर को बेच कर लिया गया पैसा और कंपनी द्वारा accumulate किया गया पैसा दोनों लियाबिलिटी में क्यों माना जाता है?

दोस्तों, इसके लिए मैं पहले ही लेख लिख चूका हूँ कि कंपनी अपना फण्ड दो तरीके से निकालती है:-

  1. इक्विटी फंड (Equity Fund)
  2. डेब्ट फंड (Debt Fund)

नीचे दिये गए लिंक को खोल कर आप वहाँ से समझ सकते हैं|

Company का Management Analysis कैसे करें ?

कंपनी का यदि प्रॉफिट होता है उसका फायदा कंपनी के ओनर को भी मिलेगा, और यदि कंपनी में लॉस (loss) होता है तो उसका भुगतान भी कंपनी के ओनर के द्वारा ही होगा| कंपनी डिविडेंड के जरिये अपना प्रॉफिट अपने कंपनी के ओनर के साथ शेयर करते हैं|

Company Shareholders को डिविडेंड देना है या नहीं और कितना डिविडेंड देना है इस बात का फैसला कंपनी के BOD के द्वारा ही लिया जाता है| वो BOD भी कंपनी के शेयर होल्डर द्वारा ही चुने जाते हैं|

कोई भी कंपनी अपना पूरा प्रॉफिट कभी भी ओनर के साथ शेयर नहीं करती है, इसके मुख्य 2 ही वजह है-

  1. ज़्यादातर कंपनी अपना कमाया हुआ प्रॉफिट दुबारा से कंपनी में ही इस्तेमाल करना चाहती है और दुबारा से इंटरेस्ट कमाना चाहती है ताकि कंपनी के ओनर को भी फायदा मिले|
  2. दूसरी बात यह है कि कंपनी का प्रॉफिट का मतलब कैश नहीं होता है|

जैसा की आपने ऊपर जाना कि कंपनी के शेयर होल्डर शेयर खरीदने कि वजह से कंपनी के पार्टनेट बन जाते हैं, और कमाया हुआ प्रॉफिट भी कंपनी को उनके साथ शेयर करना पड़ता है इसलिए यह लियाबिलिटी कहलता है|

देख जाये तो कंपनी के प्रॉफिट पर ओनर का पूरा हक होता है और यदि कंपनी अपना पूरा प्रॉफिट डिविडेंड के रूप में इन्वेस्टर को नहीं देती और अपने पास ही रखती है तो कंपनी का वो प्रॉफिट भी कंपनी के लियाबिलिटी ही कहलाएगा, क्यूंकि कंपनी के द्वारा वह रखा गया पैसा असल में उनका ना हो के इन्वेस्टर का है|

Must Read: The Intelligent Investor Book Summary in Hindi By Benjamin Graham

Information About Liabilities and Asset in Hindi – Assets और Liabilities क्या है ?
Assets + Liability = Balance Sheet Equation

मानिए कि एक कंपनी बैंक से 100 करोड़ रुपया लेती है तो वो कंपनी के लिए लियाबिलिटी हो गया और उन 100 करोड़ पया को कंपनी चाहे बैंक में रखे या फिर उन पैसों का इस्तेमाल कर वो फैक्ट्री बनाए तो वो कंपनी का एसेट कहलाएगा|

तो दोस्तों, इस तरह से हमेशा ही एक कंपनी का एसेट और लियाबिलिटी हमेशा ही बराबर रहता है, और यही एक वजह है कि उसको बैलेंस शीट कहा जाता है|

इसको हम कुछ इन शब्दों में भी समझ सकते हैं:-

  • Source of fund = Use of fund
  • Asset = Liability

लियाबिलिटी भी दो तरीके की होती है, पहला तो शेयरहोल्डर के माध्यम से शेयर को बेच कर लिया गया पैसा और दूसरा बैंक या किसी और माध्यम से कंपनी के द्वारा लिया गया पैसा (लियाबिलिटी)|

इसलिए हम बोल सकते हैं|

Asset = Shareholder’s fund + Liability

Shareholder fund में पहला ऑप्शन है – Equity Share Capital, चलिये अब इस टर्म को समझते हैं|

Balance Sheet Tutorial in Hindi – How To Analyze Share Market Balance Sheet in Hindi

यदि किसी कंपनी ने अपने 10 करोड़ शेयर को 100 रुपये प्रति शेयर के तौर पर इश्यू किए हैं तो इसका मतलब है कंपनी ने इन्वेस्टर से कुल मिला के 1000 करोड़ रूपये लिए हैं|

हर शेयर की एक फेस वैल्यू (Face Value) होती है जिसको की नॉमिनल वैल्यू और पार वैल्यू (nominal value and par value) भी कहा जाता है|

जब एक कंपनी अपने शेयर इश्यू करती है तब वो शेयर की फेस वैल्यू भी डिसाइड करती है जो कि एक एकाउंटिंग टर्म है जिसका उसके मार्केट प्राइस से कोई मतलब नहीं होता है| ज्यादातर शेयर की face value 1,2,5 या 10 रुपया होती है|

मान लेते हैं कि इस कंपनी ने अपने शेयर कि फेस वैल्यू 10 रुपये रखी है, तो अब जानते हैं कि शेयर इक्विटी कैपिटल क्या होगा?

Equity share capital formula :

Share Equity Capital = Face Value * No of Share Issued
=10*10 crore shares = 100 crores

लेकिन ऊपर आपने देखा कि कंपनी ने अपने इन्वेस्टर को 100 रुपये प्रति शेयर के दर से बेचा था, लेकिन इसकी face value 10 रूपये है|

इन 90 रूपये को शेयर प्रीमियम कहा जाता है जो कि इस हिसाब से यहाँ 900 करोड़ का हुआ है|

शेयर प्रीमियम के माध्यम से मिला हुआ पैसा Reserves and Surplus में दिखाया जाता है| यहाँ शेयर प्रीमियम के साथ-साथ शेयरहोल्डर को डिविडेंड से दिया गया पैसा देने के बाद का बचा प्रॉफिट पूरा होता है|

बैलेंस शीट का अगला टाइटल है लिया Liability, यह भी दो तरीके की होती है|

  1. पहला है Non Current Liabilities जो कि लंबे समय तक रहती है|
  2. दूसरा है Current Liabilities जो कि शॉर्ट यानि कम समय के लिए होती है|

Non Current Liabilities में नीचे दिये गए कुछ पॉइंट्स महत्वपूर्ण है|

Example of Non Current Liabilities in Hindi

Long Term Borrowings :

इसका आसान अर्थ यह है कि कंपनी ने जो भी लोन या कोई और उधार लिए हुआ यदि 1 साल पहले से ज्यादा समय हो गया है तो वो यहाँ दिखाया जाएगा|

Deferred Tax Liabilities :

जो भी कंपनी को टैक्स देना था यदि वो नहीं दिया गया है और आने वाले अगले कुछ समय में वो कंपनी के द्वारा भरा जाएगा तो वो यहाँ शो होगा|

Other Long Term Liabilities :

यहाँ वो पैसा दिखेगा जो ऊपर दिये गए दोनों ऑप्शन में हमे नहीं देखने को मिलता है, जैसे – Security Deposit, Rent Deposit, Deferred Credit इत्यादि|

Long Term Provision :

आसान शब्दों में यदि हम इसको समझे तो फ्यूचर के खर्चों के लिए कंपनी जो पैसा बचा के रखती है वो आपको यहाँ देखने को मिल जाएगा|

Current Liabilities Examples in Hindi

चलिये अब Current Liabilities की बाते कर लेते हैं, यहाँ भी आपके पास कुछ ऑप्शन है चलिये एक बार उसको पढ़ लीजिये|

Short Term Borrowings :

एक साल के समय के अंदर लिया हुआ उधार, या फिर बैंक द्वारा लिया गया लोन या कोई तरीके से लिया गया पैसा आपको यहाँ देखने को मिलेगा|

Trade Payable :

वह सभी चीजे जिनका बिल तो बन गया है लेकिन उनको भरना अभी बाकी है|

Other Current Liabilities Examples :

यहाँ वो पैसा दिखेगा जो ऊपर दिये गए दोनों ऑप्शन में हमे नहीं देखने को मिलता है, जैसे – Unclaimed & Unpaid Dividends, Bank Overdraft इत्यादि|

Example of Non Current Assets in Hindi – Balance Sheet Example in Hindi

चलिये अब एसेट के बारे में भी जान लेते हैं, यह भी दो तरीके की होती है:-

  1. Non Current Assets जो कंपनी के पास एक साल से ज्यादा समय के लिए रहेंगे और कंपनी उसको कैश में भी नहीं बदल सकती |
  2. वही दूसरा Current Assets होता है जो कि कुछ ही समय के लिए होता है और इसको एक साल के अंदर कैश में भी परिवर्तित किया जा सकता है|

जैसा मैंने आपको ऊपर लियाबिलिटी के पार्ट्स के बारे में बताया था ठीक वैसे ही चलिये अब एसेट के दोनों तरीको के बारे में जान लेते हैं|

Non Current Assets में नीचे दिये कुछ ऑप्शन है|

Non Current Assets List in Balance Sheet in Hindi

Tangible Asset :

ये वो एसेट हैं जिनको हम छू कर महसूस और देख भी सकते हैं, जैसे कि – कंपनी, फैक्ट्री इत्यादि|

Intangible Asset :

ये वो चीजे हो गई जिनको हम ना तो छू सकते हैं ना ही देख सकते हैं, जैसे – कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, पेटेंट इत्यादि|

Capital Work in Progress : ये वो एसेट हैं जो अब तक पूरे नहीं बने लेकिन कंपनी के द्वारा उनपर कुछ ना कुछ खर्चा जरूर हुआ है|

Non – Current Investments :

जैसा कि ऊपर भी आपने इस ऑप्शन को पढ़ा था, यह वह पैसा है जो कंपनी एक साल से ज्यादा समय के लिए इन्वेस्टमेंट कर चुकी है|

Long Term Loans and Advances :

जब कोई कंपनी अपने एम्प्लोयी या ओनर को एडवांस में ही जो पैसे देते हैं, उनके बारे में आपको जानने के लिए यहाँ मिलेगा|

Other Non Current Assets Examples in Hindi :

यहाँ वो पैसा दिखेगा जो ऊपर दिये गए दोनों ऑप्शन में हमे नहीं देखने को मिलता है, जैसे Interest on FD, Prepaid Expenses, Other Advances.

चलिये अब एसेट के दूसरे टाइप के बारे में विख्यात में जानते हैं, नीचे मैं आपके लिए उनके ऑप्शन के हिसाब से समझाऊँगा|

Current Investment :

कंपनी के द्वारा शॉर्ट टर्म के लिए किया गया इन्वेस्टमेंट आपको यहाँ देखने को मिलेगा|

Inventories :

यह 3 प्रकार की होती है – Raw Material, Work in Process and Finished Goods.

Trade Receivables :

जब कोई समान बेचा जाता है तो उसके लिए पैसे लिए जाते हैं, उसी तरीके से जब कंपनी अपने सामान की डिलीवरी कराती है तो उसके बदले जो पैसे कंपनी को मिलते हैं उसको ट्रेड रिसीवेबल्स कहा जाता है|

Cash and Cash Equivalents :

कंपनी के पास जो कैश है उसके साथ-साथ जिनको कुछ जल्दी ही कैश में कन्वर्ट कर सकती है वो आपको यहाँ देखने को मिल जायेगा|

Short Term Loans and Advances :

कंपनी के द्वारा एम्प्लोयी या वेंडर को दिया गया लोन या एडवांस आपको यहाँ से देखने को मिल जाएगा|

Other Current Assets :

यहाँ वो पैसा दिखेगा जो ऊपर दिये गए दोनों ऑप्शन में हमे नहीं देखने को मिलता है|

इसी तरह से ये साइकल कंप्लीट होती है और दुबारा से ऐसे ही चलती रहती है|

आशा है इस लेख के माध्यम से अब आपको बैलेंस शीट को पढ़ना आ गया होगा, पढ़ने से यहाँ मेरा अर्थ समझने से है|

यदि आपको Balance Sheet in Hindi के लेख से जुड़ी कोई समस्या है तो कमेंट कर के पूछ सकते हैं, आप चाहे तो इस लेख को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर भी कर सकते हैं ताकि वो भी बैलेंस शीट को पढ़ना सीख जाए|

क्यूंकी कर भला तो हो भला – सुना ही होगा आपने, अंत में इस लेख को आपने अंत तक पढ़ा उसके लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ| 🙂

आपके लिए ⇓

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