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महाभारत के वीर एकलव्य की कहानी

एकलव्य की कहानी : महान धनुर्धर एकलव्य की जीवन की कथा

आज के इस लेख में आपको एक बहुत ही होनहार बालक के बारे में जानने को मिलेगा, तो चलिये जानते हैं महाभारत के एकलव्य की कहानी को जिसको पढ़ कर आप काफी मोटीवेट होंगे.

एकलव्य

एकलव्य महाभारत का एक पात्र है। वह हिरण्य धनु नामक निषाद के पुत्र थे। एकलव्य को अप्रतिम लगन के साथ स्वयं सीखी गई धनुर्विद्या और गुरुभक्ति के लिए जाना जाता है।

Gender: पुरुष

यह कहानी करीबन आज से 5000 वर्ष पहले की है, जब भारत में स्कूल और कॉलेज नाम की कोई चीज नहीं हुआ करती थी, बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आपने घर से दूर अपने गुरु जी के आश्रम में उनके साथ रहते थे.

यदि आपने रामायण पढ़ा हो या देखा हो तो शायद आपको याद हो कि महर्षि विश्वामित्र अयोध्या के युवराजों (राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघन) को अपने साथ उनके राज्य से दूर धनुष विद्या सिखाने के लिए ले कर गए थे.

ठीक उसी तरह से महाभारत के समय में भी ऐसी चीजे चल रही थी, पांडव (युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव) और कौरव भी अपने गुरु जी से शिक्षा लेने के लिए अपने राज्य हस्तिनापुर से दूर गए थे.

आपने महाभारत देखते वक्त गुरु द्रोणाचार्य के बारे में कई बार सुना होगा| आज कि जो कहानी है वो आचर्य गुरु द्रोणाचार्य जी और उनके एक शिष्य एकलव्य की कहानी के बारे में है.

यकीनन ही Eklavya Ki Kahani को पूरा पढ़ने के बाद आपको एक आश्रय जनक बात के बारे में मालूम होगा| तो चलिये ध्यान से पढ़ना शुरू करते हैं:-

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महाभारत ⇓

महाभारत के वीर एकलव्य की कहानी

यह कहानी उस समय की है जब आचार्य द्रोणाचार्य पांडव तथा कौरव राजकुमारों को अस्त्र-शस्त्र की विधिवत शिक्षा प्रदान कर रहे थे| उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य हुआ करते थे.

एक रात्रि को गुरु के आश्रम में जब सभी शिष्य भोजन कर रहे थे, तभी हवा के झोंके से दीपक बुझ गया| अर्जुन ने देखा अन्धकार हो जाने पर भी सभी अपने भोजन के कौर (bites) को हाथ से मुँह तक आसानी से ले जा पा रहे है.

दोस्तों कहते हैं कि हमारे साथ हुई हर घटना हमे कुछ ना कुछ सीख देती है और उस घटना से अर्जुन के समझ में आ गया कि निशाना लगाने के लिये प्रकाश से अधिक अभ्यास की आवश्यकता है|

तब से उन्होंने रात्रि के अन्धकार में भी लक्ष्य भेदने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया| (आज भी आपने कई बार अर्जुन का नाम और मछली की आँख एक साथ बोल कर उनकी सराहना करते अक्सर सुना होगा).

गुरु द्रोण अर्जुन के इस प्रकार के अभ्यास से अत्यन्त प्रसन्न हुए, और उन्होने यह प्रण लेते हैं की वो अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाएंगे.

एकलव्य और द्रोणाचार्य की कहानी – Eklavya Story in Hindi

उन्हीं दिनों हिरण्यधनु नामक निषाद का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखना चाहता था, अपने पिता से आज्ञा ले कर वो गुरु द्रोणाचार्य के गुरुकुल जाता है|

हालांकि उस से पहले एकलव्य ने कभी भी गुरु द्रोण को देखा नहीं था पर उसके मन में उनकी एक छभी बनी हुई थी.

धनुविद्या सीखने के उद्देश्य से वो द्रोणाचार्य के आश्रम में पहुच तो जाता है किन्तु, वो ना तो क्षत्रीय धर्म का होता है और ना ही वो ब्राह्मण के परिवार से होता है और इसी कारण से गुरु द्रोण उसको शिक्षा देने से माना कर देते हैं.

वो वहाँ शीश जुकाए ही रहता है क्यूंकि उसका वहाँ से जाने का मन नहीं करता और तभी अर्जुन कड़े शब्दों में उसको बोलते हैं – तुम्हें समझ में नहीं आया क्या ? गुरु जी तुम्हें शिक्षा नहीं देंगे तो तुम यहाँ से चले जाओ और फिर निराश मन लिए एकलव्य वन में चला जाता है.

गुरु द्रोण के गुरुकुल से लौटते वक़्त वो अपने घर वापिस ना जा कर वही पास के एक जंगल में एक सही जगह देख उसे साफ करता है और वहाँ पर गुरु द्रोण की एक प्रतिमा बना कर रोज उसकी पुजा कर अपनी धनुविद्या का अभ्यास लेना आरंभ कर देता है.

एकाग्रचित्त से साधना करते हुए अल्पकाल में ही वह धनुर्विद्या में अत्यन्त निपुण हो जाता है| एक दिन अभ्यास करते समय उसे एक कुत्ते के भौकने की आवाज परेशान कर रही थी| कुछ देर तक उसने उसको नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की लेकिन फिर उसने इसका हल निकाला.

शायद यह पढ़ कर आपको ज़रूर अचंभा हो कि किस तरह से एकलव्य ने उस कुत्ते को बिना कोई जखम पहुचाए ही उसका भोकना बंद करवाया| तो आइये जानते हैं:-

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गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य की कहानी – एकलव्य का जीवन परिचय

Story of Eklavya in Hindi : एकलव्य ने अपने तीरो को कुत्ते के मुह में इस तरह से साधता है की कुत्ते को बिलकुल भी दर्द नहीं होता और उसका मुह खुला का खुला रह जाता है.

उसी समय वहाँ उस जंगल में सारे राजकुमार एवं गुरु द्रोण आखेट के लिये जाते हैं, जहाँ पर एकलव्य आश्रम बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था.

वह राजकुमारों का ही कुत्ता था जो भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा था और एकलव्य को उस वन में अकेला पा कर वो भौंकने लगा था.

एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी, किन्तु बाणों से बिंध जाने के कारण उसका भौंकना बन्द हो गया.

उनका कुत्ता जब कुछ समय बाद वहाँ लौट कर आता है तो अर्जुन उसे (कुत्ते के मुँह में जिस तरह से बाण गए थे) को देख अचंभित हो जाता है|

धनुर्विद्या के उस कौशल को देख अर्जुन द्रोणाचार्य से बोले- “हे गुरुदेव! इस कुत्ते के मुँह में जिस कौशल से बाण चलाये गये हैं, उससे तो यह प्रतीत होता है कि यहाँ पर कोई मुझसे भी बड़ा धनुर्धर रहता है|”

बस फिर क्या था सभी उस वीर की खोज मे निकल गए, अपने सभी शिष्यों को लेकर द्रोणाचार्य एकलव्य के पास जा पहुँचे और पूछा- “हे वत्स! क्या ये बाण तुम्हीं ने चलाये है?”

एकलव्य के स्वीकार करने पर उन्होंने पुनः प्रश्न किया- “तुम्हें धनुर्विद्या की शिक्षा देने वाले कौन हैं?”

गुरु द्रोण को बिलकुल भी याद नहीं था कि कुछ ही समय पहले एकलव्य उनके गुरुकुल में धनुविद्या सीखने के मकसद से वहाँ उनके पास आया था और उन्होने उसके छोटी जाती के होने की वजह से उसको धनुविद्या सिखाने से इंकार कर दिया था.

एकलव्य ने शीश झुका कर उत्तर दिया- “गुरुदेव! मैंने तो आपको ही अपना गुरु स्वीकार करके धनुर्विद्या सीखी है।”

इतना कह कर उसने द्रोणाचार्य को उनकी मूर्ति के समक्ष ले जाकर खड़ा कर दिया|

गुरु द्रोणाचार्य इतना जानने के बाद खुश हुये लेकिन उनको उनका प्रण याद आया और उस वजह से वो नहीं चाहते थे कि कोई भी अर्जुन से बड़ा धनुर्धारी बन पाये| और तभी उन्होने सोचा की इसका कुछ ना कुछ हल तो निकालना ही पड़ेगा, और तभी फिर वो बोले.

गुरु द्रोण ⇒ यदि मैं तुम्हारा गुरु हूँ तो तुम्हें मुझको गुरु दक्षिणा देनी होगी|

एकलव्य बोला ⇒ गुरुदेव! गुरु दक्षिणा के रूप में आप जो भी मांगेंगे में देने के लिये तैयार हूँ|

इस पर द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में उसके दाहिने हाथ के अँगूठे की माँग की|

दोस्तो यदि आपको ज्ञात ना हो तो मै आपको बताना चाहता हूँ कि एक धनुष चलाने वाले व्यक्ति से उसका अंगूठा मांगना उसकी विद्या मांगने के समान है.

लेकिन फिर भी एकलव्य ने बिना कुछ सोचे सहर्ष अपना अँगूठा काटकर द्रोणाचार्य के चरणों में समर्पित कर दिया|

गुरु द्रोण इस बात से खुश हुये और उन्होने एकलव्य को यह आशीर्वाद दिया कि – अपना अंगूठा देने के बाद भी इतिहास में तुम्हे एक वीर धनुधारी माना जाएगा, और जब भी कोई गुरु और गुरु दक्षिणा के बारे में बात करेगा तो तुम्हारी बात वहाँ ज़रूर की जाएगी.

दोस्तो इतना होने के बाद शायद मेरे जैसा कोई व्यक्ति होता तो धनुष उसी दिन से चलाना छोर देता लेकिन एकलव्य अपने हाथ से धनुष चलाने में असमर्थ हो गया तो अपने पैरों से धनुष चलाने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया.


हमारे मार्ग में बाधा – Inspiration Story in Hindi For Students

एक बार एक बहुत धनी और जिज्ञासु राजा था| एक दिन कि बात है राजा एक सड़क से गुजर रहा था तभी उसने देखा कि सड़क पर एक विशाल चट्टान रखा है.

सड़क के बगल में एक अच्छी जगह देख राजा यह देखने के लिए पास में छिप गया कि क्या कोई सड़क से विशाल चट्टान को हटाने की कोशिश करेगा.

सबसे पहले कुछ लोगों ने राजा के सबसे धनी व्यापारियों और दरबारियों में से कुछ को इस कार्य के लिया चुना, लेकिन इसे स्थानांतरित करने के बजाय, वे बस इसके चारों ओर चले गए.

वही कुछ ने तो सड़क पर उस विशाल चट्टान के रखे रखने के लिए राजा को दोषी ठहराया, उनमें से किसी ने भी पत्तर को हिलाने की कोशिश नहीं की|

अंत में, एक किसान साथ आया जिसकी भुजाएँ सब्जियों से भरी थीं| जब वह उस पत्तर के पास गया, तो उसने काफी प्रयास करते हुये पत्तर को सड़क से हटाने में सफल हुआ.

किसान अपने भार को इकट्ठा करके अपने रास्ते पर जाने के लिए तैयार था, जब वह देखता है कि सड़क में एक पर्स पड़ा है जहां पत्तर पड़ा था|

किसान ने पर्स उठाया और उसे खोला, उसमे उसने देखा कि कुछ सोने के सिक्के और राजा का एक नोट भरा रखा हुआ था.

राजा के नोट के माध्यम से यह कहा था कि इस पर्स का सोना सड़क से पत्तर को हटाने वाले के लिए एक छोटा सा इनाम था.

राजा ने किसान को दिखाया कि हम में से कई कभी नहीं समझते हैं: हर बाधा हमारी स्थिति को सुधारने का अवसर प्रस्तुत करती है.

कमेंट के माध्यम से हमे बताये कि आपको इस कहानी को पढ़ कर क्या सिखने को मिला.


एक बहुत ही विशेष बैंक खाता – Motivational Story in Hindi For Students

आइये एक और मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी फॉर स्टूडेंट्स के ऊपर पढ़ते है.

जरा आप सोचिए कि आपके पास एक बैंक खाता था जिसमे रोज सुबह $86,400 जमा किया जाता था, खाता दिन-प्रतिदिन बिना किसी संतुलन के चलता है.

आपको कोई नकद शेष राशि रखने की अनुमति नहीं देता है, और प्रत्येक शाम को जो भी राशि आप दिन के दौरान उपयोग करने में असफल रहते थे, उसे रद्द कर देते हैं.

तो अब आप बताइये कि आप क्या करोगे?

हर दिन हर डॉलर निकालो!

मैं जानता हूँ कि आप सभी का जवाब हाँ ही होगा क्यूंकि इस पृथ्वी पर कोई भी एक इंसान ऐसा नहीं है जिसे पैसे की जरूरत नहीं है.

दोस्तों, हम सभी के पास ऐसा बैंक है, इसका नाम टाइम (समय) है.

हर सुबह, यह आपको 86,400 सेकंड का श्रेय देता है और हर रात यह लिखना बंद हो जाता है, क्योंकि जो भी समय आप बुद्धिमानी से उपयोग करने में असफल रहे हैं.

यह दिन-प्रतिदिन बिना किसी संतुलन के चलता है, यह कोई ओवरड्राफ्ट नहीं देता है ताकि आप अपने खिलाफ उधार न ले सकें या आपके पास अधिक समय का उपयोग न कर सकें.

हर दिन, खाता नए सिरे से शुरू होता है और प्रत्येक रात, यह एक अप्रयुक्त समय को नष्ट कर देता है.

यदि आप दिन की जमा राशि का उपयोग करने में विफल रहते हैं, तो यह आपकी हानि है और आप इसे वापस पाने के लिए अपील नहीं कर सकते.

कोई उधार लेने का समय नहीं है। आप अपने समय पर या किसी और के खिलाफ ऋण नहीं ले सकते आपके पास जो समय है, वह समय आपके पास है और वह आपके पास ही रहता है.

समय प्रबंधन यह तय करने के लिए है कि आप किस तरह समय बिताते हैं, जैसे पैसे के साथ आप तय करते हैं कि आप पैसे कैसे खर्च करते हैं.

यह कभी नहीं होता है कि हमारे पास चीजें करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, लेकिन यह मानना कि क्या हम उन्हें करना चाहते हैं और वे हमारी प्राथमिकताओं में कहां आते हैं.


आशा करता हूँ की इस लेख से आपको ज्ञान मिला होगा, और अब आप इस लेख को अपने जानकारो एवं दोस्तों के साथ सोशल मीडिया के मधायम से शेयर भी करेंगे.

यदि आप एक शिक्षक है तो यकीनन ही आप एकलव्य की कहानी (Eklavya Ki Kahani) को अपनी कक्षा मे मोटिवेशन के तौर पर अपने विद्यार्थियों को सुनाएँगे.

Eklavya Story in Hindi के इस लेख से आपको क्या-क्या सीखने को मिला हमे कमेंट कर के बताना मत भूलिएगा.

संपूर्ण रामायण ⇓

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2 Comments

  1. द्रोणाचार्य और उसका नीच धर्म भारत को बर्बाद कर दिया ।

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