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भगत सिंह पर कविता - Famous Poem on Bhagat Singh in Hindi
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भगत सिंह पर कविता जो आपके दिल को छू जाएगी

शहीद भगत सिंह हमारे देश के महान क्रांतिकारियों में से एक है। उन्होंने भारत देश को आजादी दिलाने के लिए अपनी जिंदगी तक न्योछावर कर दी। आज भगत सिंह हमारे साथ नहीं है परंतु उनकी यादें आज भी हमारे अंदर जीवित है। तो उसी लिए आज मैं आपके साथ भगत सिंह पर कविता साझा करने जा रहा हूँ।

यह जो Hindi Poem on Bhagat Singh मैं आप सभी देशवासियों के साथ प्रकट करने जा रहा हूँ यह एक क्रांतिकारी कविता है। यह कविता भगत सिंह के ऊपर निर्धारित की गई है। आप सभी देश भक्तों से नर्म निवेदन है कि अगर आपको Bhagat Singh Poem पसंद आये तो इस पोएम को आप सोशल मीडिया पर बाकी सभी भक्तों के साथ शेयर करें और भगत सिंह जी के ऊपर कमेंट करके अपना प्यार प्रकट करें।

Poem on Bhagat Singh in Hindi Kavita को शुरू करने से पहले आप सभी देशवासियों के लिए मैं यहां देश भक्ति गाना लेकर आया हूँ जो आपको बहुत पसंद आयेगा, इसके बाद हम अपनी Famous Desh Bhakti Hindi Poems शुरू करेंगे।

Mera Mulk Mera Desh Lyrics in Hindi

मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन 
शांति का उन्नति का प्यार का चमन 
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन 
शांति का उन्नति का प्यार का चमन 
इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन

ए वतन, ए वतन, ए वतन 
जानेमन, जानेमन, जानेमन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन

मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन

आ.. हा.. आहा.. आ..

इसकी मिट्टी से बने तेरे मेरे ये बदन 
इसकी धरती तेरे मेरे वास्ते गगन
इसने ही सिखाया हमको जीने का चलन
जीने का चलन..
इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन 
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन

मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन

अपने इस चमन को स्वर्ग हम बनायेंगे
कोना-कोना अपने देश का सजायेंगे
जश्न होगा ज़िन्दगी का, होंगे सब मगन
होंगे सब मगन..
इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन

मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन
शांति का उन्नति का प्यार का चमन

इसके वास्ते निसार है मेरा तन मेरा मन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन
ए वतन, ए वतन, ए वतन
जानेमन, जानेमन, जानेमन..

क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह पर कविता

Bhagat Singh png

मुझे उम्मीद है कि ऊपर जो Desh Bhakti Kavita है आपको पसंद आया होगा। इसके बाद बारी आती है भगत सिंह पर कविता की, तो चलिए अब हम अपनी हिन्दी कविता को शुरू करते हैं।


Short Poem on Bhagat Singh in Hindi

बात सुनो भाई भगत सिंह
गुंडे चोर इंडिया के...
बात सुनो भाई भगत सिंह
गुंडे चोर इंडिया के...
भारत माँ को लुटते है जनता के सपने टूटते हैं,
गरीब भूखे मरते है अमीरों के घर भरते है.

लड़कियां सड़े तेजाब में
जवानी रुले शराब में...
आज देश आजाद है आज देश आजाद है
आपकी क़ुरबानी पर नाज है.
पर क्या करें ऐसी आजादी का
हर दिन दिखती बर्बादी का....

यह हे हाल देश का
सफ़ेद कपड़ो में गुंडों के भेस का.
किसी को कोई टेंशन नहीं बूढ़े को मिली पेंशन नहीं..
गाय का खाते चारा यह,
हमारा देश है महान का लगाते नारा यह...
किस चीज का इनको नाज है,
किस चीज का हमें नाज है...
ऐसा क्या है जो हमारे देश में महान हैं,
ऐसा क्या है जो हमारे देश में महान हैं......

Bhagat Singh Poem in Hindi

*हंसते हंसते फांसी को गले लगाया*

मोमबत्तियां बुझ गयी
चिराग तले अँधेरा छाया था
फांसी के फंदे पर जब
तीनों वीरों को झुलाया था
सुखदेव,भगत सिंह,राजगुरु के
मन को कुछ और न भाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

तीनों के साथ आज
एक बड़ा सा काफिला था
भारतवर्ष में लगा जैसे
मेला कोई रंगीला था
लेकर जन्म इस पावन धरा पर
उन्होंने अपना फर्ज निभाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

मौत का उनको डर न था
सीने में जोश जोशीला था
परवाह नहीं थी अपने प्राण की
बसंती रंग का पहना चोला था,
छोड़ मोह माया इस जग की
अपनों को भी भुलाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

इंकलाब का नारा लिए
विदा लेने की ठानी थी
लटक गए फांसी पर किन्तु
मुख से उफ्फ तक न निकाली थी,
देश भक्ति को देख तुम्हारी
सबने अश्रुधार बहाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

तुम छोड़ गए इस दुनिया को
दिखाकर आजादी का सपना
सपना हुआ था सच लेकिन
हमने खो दिया बहुत कुछ अपना,
गोरों ने अपनी संस्कृति को
हमारे सभ्याचार में बसाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

टुकड़े टुकड़े कर गोरों ने
भारत माँ का सीना चीरा था
एकसूत्र करने का हम पर
बहुत ही बड़ा बीड़ा था,
हिन्दू मुस्लिम के झगड़ों ने
इंसानियत के रिश्ते को भरमाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

आज़ादी के बाद तो देखो
कैसे यह लगी बीमारी थी
हिन्दू मुस्लिम के चक्कर में
लड़ना सबकी लाचारी थी,
कुछ को हिंदुस्तान मिला
तो कुछ ने पाकिस्तान बनाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

जातिवाद का खेल में
बंट गया समाज भी अपना
ये तो वो न था
जो देखा था तुमने सपना,
सत्ता का खेल निराला आया
परिवार वाद भी उसमे गहरा छाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

गाँधी नेहरू और जिन्ना ने फिर
राजनितिक माहौल बनाया था
देश की सत्ता की खातिर
अखंडता को दांव पर लगाया था,
बस अपनी बात मनवाने को
देश को टुकड़ों में बंटवाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

सरहद के उस बंटवारे का
आज तलक असर दिखता है
भारत पाक की सीमाओं पर
सिपाही मौत से लड़ता है,
तुमने जो सोचा था वैसा
कोई ये देश बना न पाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

इक वक़्त के खाने के लिए
कोई गरीब दिन-रात तरसता है
कुछ ने रेशम की पोशाक वालों का
गुस्सा मजलूमों पर बरसता है,
कहीं जात-पात का शोर
तो कहीं आरक्षण ने सबको लड़ाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

जैसा न तुमने सोचा था
वैसी है अपनी आज़ादी
देश के लोग ही कर रहे हैं
आज इस देश की बर्बादी,
जब-जब सोचा तुम्हारे बारे में
मुझको तो रोना आया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

स्वरचित
हरीश चमोली
टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)

भगत सिंह मस्ताना था कविता

Bhagat Singh Mastana Tha Poem
Bhagat Singh Mastana Tha Poem

Bhagat Singh Mastana Tha Poem

फांसी का झूला झूल गया मर्दाना भगत सिंह,
दुनिया को सबक दे गया मस्ताना भगत सिंह।

राजगुरु से शिक्षा लो, दुनिया के नवयुवको!
सुखदेव से पूछो, कहां मस्ताना भगत सिंह।

रोशन कहां, अशफ़ाक़ और लहरी, कहां बिस्मिल,
आज़ाद से था सच्चा दोस्ताना भगत सिंह।

स्वागत को वहां देवगण में इंद्र भी होंगे,
परियां भी गाती होंगी ये तराना भगत सिंह।

दुनिया की हर एक चीज़ को हम भूल क्यों न जाएं,
भूलें न मगर दिल से मस्ताना भगत सिंह।

भारत के पत्ते-पत्ते में सोने से लिखेगा,
राजगुरु, सुखदेव और मस्ताना भगत सिंह।

ऐ हिंदियो, सुन लो, ज़रा हिम्मत करो दिल में,
बनना पड़ेगा सब को अब दीवाना भगत सिंह।

भगत सिंह पर कविता कोश

भगत सिंह प्रायः यह शेर गुनगुनाते रहते थे-
जबसे सुना है मरने का नाम जिन्दगी है
सर से कफन लपेटे कातिल को ढूँढ़ते हैं।।

२३ मार्च १९३१ को सायंकाल ७ बजकर २३ मिनट पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु फाँसी के फंदे पर झूल गए। श्रीकृष्ण सरल द्वारा लिखी गई कविता उनके ग्रंथ क्रान्ति गंगा से साभार यहाँ दी जा रही है।

आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है
दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है
बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है
क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है?

हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला
माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला
मातृभूमि पर अर्पित होंगे, तीन फूल ये पावन,
यह उनका त्योहार सुहावन, यह दिन उन्हें सुहावन।

फाँसी की कोठरी बनी अब इन्हें रंगशाला है
झूम झूम सहगान हो रहा, मन क्या मतवाला है।
भगत गा रहा आज चले हम पहन वसंती चोला
जिसे पहन कर वीर शिवा ने माँ का बंधन खोला।

झन झन झन बज रहीं बेड़ियाँ, ताल दे रहीं स्वर में
झूम रहे सुखदेव राजगुरु भी हैं आज लहर में।
नाच नाच उठते ऊपर दोनों हाथ उठाकर,
स्वर में ताल मिलाते, पैरों की बेड़ी खनकाकर।

पुनः वही आलाप, रंगें हम आज वसंती चोला
जिसे पहन राणा प्रताप वीरों की वाणी बोला।
वही वसंती चोला हम भी आज खुशी से पहने,
लपटें बन जातीं जिसके हित भारत की माँ बहनें।

उसी रंग में अपने मन को रँग रँग कर हम झूमें,
हम परवाने बलिदानों की अमर शिखाएँ चूमें।
हमें वसंती चोला माँ तू स्वयं आज पहना दे,
तू अपने हाथों से हमको रण के लिए सजा दे।

सचमुच ही आ गया निमंत्रण लो इनको यह रण का,
बलिदानों का पुण्य पर्व यह बन त्योहार मरण का।
जल के तीन पात्र सम्मुख रख, यम का प्रतिनिधि बोला,
स्नान करो, पावन कर लो तुम तीनो अपना चोला।

झूम उठे यह सुनकर तीनो ही अल्हण मर्दाने,
लगे गूँजने और तौव्र हो, उनके मस्त तराने।
लगी लहरने कारागृह में इंक्लाव की धारा,
जिसने भी स्वर सुना वही प्रतिउत्तर में हुंकारा।

खूब उछाला एक दूसरे पर तीनों ने पानी,
होली का हुड़दंग बन गई उनकी मस्त जवानी।
गले लगाया एक दूसरे को बाँहों में कस कर,
भावों के सब बाँढ़ तोड़ कर भेंटे वीर परस्पर।

मृत्यु मंच की ओर बढ़ चले अब तीनो अलबेले,
प्रश्न जटिल था कौन मृत्यु से सबसे पहले खेले।
बोल उठे सुखदेव, शहादत पहले मेरा हक है,
वय में मैं ही बड़ा सभी से, नहीं तनिक भी शक है।

तर्क राजगुरु का था, सबसे छोटा हूँ मैं भाई,
छोटों की अभिलषा पहले पूरी होती आई।
एक और भी कारण, यदि पहले फाँसी पाऊँगा,
बिना बिलम्ब किए मैं सीधा स्वर्ग धाम जाऊँगा।

बढ़िया फ्लैट वहाँ आरक्षित कर तैयार मिलूँगा,
आप लोग जब पहुँचेंगे, सैल्यूट वहाँ मारूँगा।
पहले ही मैं ख्याति आप लोगों की फैलाऊँगा,
स्वर्गवासियों से परिचय मैं बढ, चढ़ करवाऊँगा।

तर्क बहुत बढ़िया था उसका, बढ़िया उसकी मस्ती,
अधिकारी थे चकित देख कर बलिदानी की हस्ती।
भगत सिंह के नौकर का था अभिनय खूब निभाया,
स्वर्ग पहुँच कर उसी काम को उसका मन ललचाया।

भगत सिंह ने समझाया यह न्याय नीति कहती है,
जब दो झगड़ें, बात तीसरे की तब बन रहती है।
जो मध्यस्त, बात उसकी ही दोनों पक्ष निभाते,
इसीलिए पहले मैं झूलूं, न्याय नीति के नाते।

यह घोटाला देख चकित थे, न्याय नीति अधिकारी,
होड़ा होड़ी और मौत की, ये कैसे अवतारी।
मौत सिद्ध बन गई, झगड़ते हैं ये जिसको पाने,
कहीं किसी ने देखे हैं क्या इन जैसे दीवाने?

मौत, नाम सुनते ही जिसका, लोग काँप जाते हैं,
उसको पाने झगड़ रहे ये, कैसे मदमाते हें।
भय इनसे भयभीत, अरे यह कैसी अल्हण मस्ती,
वन्दनीय है सचमुच ही इन दीवानो की हस्ती।

मिला शासनादेश, बताओ अन्तिम अभिलाषाएँ,
उत्तर मिला, मुक्ति कुछ क्षण को हम बंधन से पाएँ।
मुक्ति मिली हथकड़ियों से अब प्रलय वीर हुंकारे,
फूट पड़े उनके कंठों से इन्क्लाब के नारे ।

इन्क्लाब हो अमर हमारा, इन्क्लाब की जय हो,
इस साम्राज्यवाद का भारत की धरती से क्षय हो।
हँसती गाती आजादी का नया सवेरा आए,
विजय केतु अपनी धरती पर अपना ही लहराए।

और इस तरह नारों के स्वर में वे तीनों डूबे,
बने प्रेरणा जग को, उनके बलिदानी मंसूबे।
भारत माँ के तीन सुकोमल फूल हुए न्योछावर,
हँसते हँसते झूल गए थे फाँसी के फंदों पर।

हुए मातृवेदी पर अर्पित तीन सूरमा हँस कर,
विदा हो गए तीन वीर, दे यश की अमर धरोहर।
अमर धरोहर यह, हम अपने प्राणों से दुलराएँ,
सिंच रक्त से हम आजादी का उपवन महकाएँ।

जलती रहे सभी के उर में यह बलिदान कहानी,
तेज धार पर रहे सदा अपने पौरुष का पानी।
जिस धरती बेटे हम, सब काम उसी के आएँ,
जीवन देकर हम धरती पर, जन मंगल बरसाएँ।।

मेरे प्यारे देश वासियों मुझे उम्मीद है कि आपको Bhagat Singh Ki Kavita पसंद आई होगी और इस कविता को आप बच्चों और बड़ों के साथ साझा भी करेंगे। अगर आपको भगत सिंह पर कविता के ऊपर कुछ बोलना है या शहीद भगत सिंह के बारे में अपने विचार प्रकट करने है तो आप कमेंट करके हमारे और सभी लोगों के साथ अपने विचार प्रकट कर सकते हो। धन्यवाद

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6 Comments

  1. bahut hi badhiya ! ye song mai bacpan se sunta aara hu aur aajbhi iske bol man ko khush karte hai aur ek nayi umang bhar dete hai.

  2. भारतवर्ष को आजाद कराने में ना जाने कितने ही क्रान्तिकारियो ने कम उम्र में ही अपने प्राणों को देश के नाम न्योछावर किया | ना जाने कितने ही लोगों को परिवार सहित गोलियों का निशाना बनाया था |आजादी को न्योछावर भारतीय क्रान्तिकारी के बलिदान को जनजागरण करता समाजसेवी संगठन ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
    राष्ट्रीय नौजवान सभा
    राष्ट्रीय कार्यालयः-एटा बाईपास रोड़,क्वार्सी,अलीगढ़ (उ0प्र0) भारत
    सदस्यता के लिए
    सम्पर्क सूत्रः-08273337571

  3. नाज तुझको तो होगा भगत सिंह की मां
    तेरा बेटा वतन के काम आ गया
    सर झुका कर नहीं सर उठा के चला
    देश के वास्ते जा… लुटा के चला
    जाने वालो को देखो वतन के लिए
    समा आजादी की वो जला जाएंगे
    इन्कलाब जिंदाबाद

    1. सर मुझे भी एक छोटी सी कविता लिखवाने है ।
      लिखोगे क्या प्लिज।

  4. भाई, बहुत ही कमाल का पोस्ट लिखा है आपने, आपके समझाने का तरीका भी बहुत ही अच्छा है, आप ऐसे ही लिखते रहिए, धन्यवाद

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