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Bodhidharma History in Hindi
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बोधिधर्म का इतिहास व जीवन परिचय

Bodhidharma History in Hindi – बोधिधर्मन का इतिहास

कुंग-फू शब्द का नाम आते ही दिमाग में ख्याल आता है चीनी लोगों का। क्योंकि मार्शल आर्ट में मुख्य कुंग-फू सीखने के लिए विश्व भर से हर साल बड़ी संख्या में लोग चीन का दौरा करते हैं। लेकिन असल में martial arts की शुरुआत कब हुई, इसके इतिहास के विषय पर सभी को पर्याप्त जानकारी नहीं है।

इसलिए इस लेख के माध्यम से हम आपको मार्शल आर्ट के पितामह कहे जाने वाली बोधिधर्म के बारे में जानेंगे। हम बोधिधर्म इतिहास के उन पन्नों को भी खोलेंगे जहां से मार्शल आर्ट की शुरुआत हुई। तो चलिए शुरू करते हैं।

धर्म बौद्ध धर्म
पाठशाला चान
राष्ट्रीयता भारतीय, प्राचीन चीनी
उपदि Chanshi 1st Chan Patriarch
उत्तराधिकारी Huike
शिष्य Huike

Bodhidharma History in Hindi

  • बोधिधर्मन कौन थे?

बोधिधर्म एक महान भारतीय बौद्ध भिक्षु एवं विलक्षण योगी थे। बाल्यावस्था से ही बोधिधर्मन या बोधिधर्म का मन सांसारिक दुनिया से अलग हो गया था। तथा वे एक भिक्षुक बन कर अपना जीवन जीना चाहते थे। इसलिए एक राजकुमार के पुत्र होने के बावजूद भी उन्होंने एक बतौर भिक्षुक बनकर अपना जीवन व्यतीत किया।

बोधिधर्म दक्षिण भारत के पल्लव राज्य के राजा सुगंध के तीसरे पुत्र थे। बौद्ध धर्म की शिक्षा से प्रेरित होकर बोधिधर्म ने बचपन में ही राजपाट त्याग कर बौद्ध भिक्षु बन गए।

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मात्र 22 वर्ष की उम्र में बोधिधर्म को मोक्ष की प्रथम अवस्था प्राप्त हुई। जिसके पश्चात उन्हें बौद्ध धर्म के विस्तार की प्रेरणा मिली तथा उन्होंने चीन, कोरिया, जापान जैसे देशों का भ्रमण किया तथा वहां पर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार कर अनेक लोगों को बौद्ध धर्म का ज्ञान दिया।

इसलिए कहा जाता है कि बोधिधर्म के माध्यम से ही चीन, कोरिया, जापान जैसे देशों में बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ। बोधिधर्म को चीन में “जैन बौद्ध धर्म के संस्थापक” के रूप में भी जाना है।

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Bodhidharma Story in Hindi PDF

  • मार्शल आर्ट सिखाया चीन को बोधिधर्म ने

बोधिधर्म 520 ईसवी में चीन गए और वहां ध्यान संप्रदाय की नीव रखी। जिसे चीनी भाषा में चौं या झेन भी कहा जाता है। तथा चीन के लोगों को मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित करना शुरू किया। इसलिए उन्हें मार्शल आर्ट के जनक रूप के रूप में भी जाना जाता है।

बोधिधर्म महज मार्शल आर्ट में ही नहीं बल्कि कई अन्य विद्याओं में भी निपुण थे। उनके पास आयुर्वेद, सम्मोहन के साथ साथ दैवीय शक्तियों एवं पंच तत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी) को भी नियंत्रित करने की विद्या में महारत हासिल थी।

प्राचीन काल में भगवान श्री कृष्ण ने कालारिपयट्टू जिसे आज मार्शल आर्ट के नाम से जाना जाता था। कालारिपयट्टू का अर्थ है “बिना शस्त्र के युद्ध करना”

श्री कृष्ण भगवान ने इस विद्या का उपयोग कर अनेक दुश्मनों को पराजित किया था इसलिए कहा जाता है कालारिपयट्टू तथा मार्शल आर्ट की नींव भगवान श्री कृष्ण ने ही रखी थी। तथा आधुनिक मार्शल आर्ट को बोधिधर्म ने चीन, जापान जैसे देशों में विकसित करने एवं प्रचारित करने का कार्य किया।

Who is Bodhidharma and His Story in Hindi

Bodhidharma

बोधिधर्म दक्षिण भारत के पल्लव राज्य के कांचीपुरम परिवार में जन्मे थे। कम उम्र में ही सांसारिक दुनिया को छोड़ बोधिधर्म भिक्षु बन कर जीवन व्यतीत करने लगे।

22 वर्ष की उम्र में मोक्ष की पहली अवस्था को प्राप्त करने के बाद उनकी राजमाता ने उन्हें आदेश दिया कि वह सत्य एवं ध्यान के प्रचार-प्रसार हेतु चीन में जाएं क्योंकि उस समय मोटर बाइक कार जैसे कोई साधन नहीं थे इसलिए पैदल चलकर ही मीलों का सफर तय करना पड़ता था। इसलिए कई महीनों के बाद जब चीन के (नानकिंग) गांव में बोधिधर्म पहुंचे तो माना जाता है कि उस गांव में उस समय ज्योतिषियों द्वारा गांव में संकट आने के संकेत दिए थे।

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गांव के लोग उस समय काफी घबराए हुए थे। तथा बोधिधर्म के गांव में पहुंचते ही उन्हें एक संकट का रूप समझ कर गांव के बाहर खदेड़ दिया गया। जिससे बोधिधर्म को गांव के बाहर ही रहना पड़ा, परंतु गांव वाले इस बात से बिल्कुल भी वाकिफ नहीं थे।

असल में संकट की घड़ी तो अब आने वाली थी और कुछ दिन बाद ही गांव में महामारी फैल गई जिसने कई बच्चे लोगों को चपेट में ले लिया तथा गांव के लोग बीमारी से ग्रसित सभी लोगों को गांव से बाहर करने लगे, ताकि वह बीमारी किसी अन्य व्यक्ति को न फैल सके।

जब इस बात का पता बोधिधर्म को पता चला तो उन्होंने इस संकट के समय में गांव के लोगों की मदद की। क्योंकि बोधिधर्म आयुर्वेद के भी ज्ञानी थे तथा उन्होंने बीमारी से ग्रसित बच्चों एवं बड़ों को मृत्यु से बचा लिया।

तब जाकर गांव वालों को यह एहसास हुआ कि बोधिधर्मन कोई संकटकर्ता नहीं बल्कि प्राण बचाने वाला साक्षात कोई अजूबा उनके गांव में आया है। तथा गांव के लोगों ने बोधिधर्म से गांव में रहने की प्रार्थना की और बोधिधर्म सम्मान के साथ अब गांव में रहने लगे।

बोधिधर्म ने अपनी आयुर्वेदिक शिक्षा को गांव के अन्य लोगों तक भी पहुंचाया तथा उन्हें जड़ी बूटी के विषय पर जानकारी दी एवं महामारी के निवारण हेतु सभी जड़ी बूटियों की जानकारी दी, जिससे लोगों को महामारी से निपटने का समाधान मिल गया।

लेकिन बोधिधर्म तथा गांव के निवासियों के लिए वह बेहद संकट का दौर था क्योंकि महामारी के जाने के बाद ही कुछ दिनों के भीतर गांव में डकैत, लुटेरे आकर गांव के लोगों में हमला करने लगे तथा दिनदहाड़े अनेक निर्दोष लोगों को दिनदहाड़े मारने का प्रयास करने लगे।

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गांव का माहौल बेहद डरावना हो चुका था सभी लोग घरों से बाहर निकलने में डर रहे थे। परंतु बोधिधर्म न सिर्फ एक आयुर्वेदिक चिकित्सक थे बल्कि उन्हें अन्य विद्याओं में भी महारत हासिल थी। वे प्राचीन भारत की निःशस्त्र विधि से लड़ना जानते थे।, कलरीपायट्टु को आज मार्शल आर्ट के नाम से भी जाना जाता है।

बोधिधर्म ने अपनी शक्तियों का उपयोग कर लुटेरों को हरा दिया तथा मजबूर लुटेरों को गांव छोड़कर भागना पड़ा। परंतु गांव के लोगों के लिए बोधिधर्म को लुटेरों की टोलियां के साथ अकेला लड़ना देख वाकई आश्चर्यजनक था। वे भी समझ गए कि इस व्यक्ति में कुछ तो विशेष है, यह सामान्य व्यक्ति नहीं है। क्योंकि बिना शस्त्र के हथियारबंद लुटेरों के साथ लड़ना कोई आसान कार्य नहीं था।

अब बोधिधर्म के प्रति गांव के लोगों का सम्मान और भी अधिक बढ़ गया। बोधिधर्म ने गांव के निवासियों की आत्मरक्षा के लिए सभी पुरुषों एवं स्त्रियों को मार्शल आर्ट की शिक्षा दी, सभी को इस शिक्षा में पारंगत करने के लिए बोधिधर्मन ने पूरी लगन के साथ मार्शल आर्ट सिखाया।

इस प्रकार कई वर्षों तक बोधिधर्मन ने चीन के इसी गांव में रहकर लोगों के दिलों में अपना विशेष स्थान बनाया। और जब उन्होंने वापस भारत आने की इच्छा जाहिर की तो एक बार फिर से ज्योतिषियों द्वारा गांव में भीषण संकट की भविष्यवाणी की गई। तथा इस भविष्यवाणी के अनुसार गांव का संकट तभी टल सकता है, जब तक बोधिधर्म इस गांव में है।

History of Bodhidharma in Hindi (Bodhidharma Death)

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 बोधिधर्म भारत वापस जाने का मन बना चुके थे तो इस संकट से बचने के लिए गांव वालों ने एक युक्ति सूझी जिसके अनुसार वे बोधिधर्म को मारना चाहते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि बोधिधर्मन को भारत जाने से रोकने का लिए केवल यही उपाय था।

एक शाम जब बोधिधर्मन भोजन कर रहे थे तो उनके भोजन में जहर मिला दिया गया। परंतु इस बात का पता जब बोधिधर्मन को चला तो उन्होंने गांव के लोगों को बुलाया और कहा तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो?

तो गांव वालों ने कहा कि इस गांव के संकट से बचने के लिए बोधिधर्मन तुम्हें यहां रुकना ही होगा फिर चाहे जिंदा या फिर मुर्दा। क्योंकि ज्योतिषियों ने कहा है कि यदि तुम्हारे शरीर को यहां दफना दिया जाए तो गांव के सभी संकट समाप्त हो जाएंगे। इसलिए उस संकट से बचने के लिए हमने आपके खाने में जहर मिला दिया।

यह सुनकर बोधिधर्म ने कहा….

अच्छा ऐसा है तो फिर आज से इस गांव का संकट हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। और उन्होंने बड़े ही चाव से जहर युक्त भोजन ग्रहण कर लिया और इस तरह बोधिधर्म की मृत्यु उन्हीं के शिष्यों द्वारा भोजन में जहर डालने से हुई।

Biography of Bodhidharma in Hindi

बोधिधर्म के समकालीनों द्वारा लिखे गए दो ज्ञात अतिरिक्त लेखे हैं। इन स्रोतों के अनुसार, बोधिधर्म पश्चिमी क्षेत्रों से आया था, और या तो एक “फारसी मध्य एशियाई” या “दक्षिण भारतीय एक महान भारतीय राजा का तीसरा पुत्र था।”

बाद के स्रोत इन दो स्रोतों को आकर्षित करते हैं, अतिरिक्त विवरण जोड़ते हैं, जिसमें ब्राह्मण राजा से वंशज होने के लिए एक परिवर्तन शामिल है, जो पल्लवों के शासनकाल के साथ होता है, जो एक ब्राह्मण वंश से संबंधित होने का दावा करते हैं।

बोधिधर्मन इतिहास और पौराणिक कथा Bodhidharma History in Hindi

बोधिधर्म ने की चाय की शुरुआत…..

प्राचीन काल से ही भारतवर्ष संत मुनि, ऋषियों का देश रहा है। इसलिए यह कहानी उस समय की है जब चीन का राजा चीन में भारत के किसी महान भिक्षुक के आने का इंतजार था। क्योंकि राजा अपने मन में चल रहे धार्मिक और दार्शनिक प्रश्नों के हल चाहता था।

इसके साथ ही चीन के राजा को किसी भविष्यवक्ता ने यह संकेत दिए थे जिससे उसे पता लग गया था कि किसी भारतीय बौद्ध भिक्षुक के चीन में आने से चीन का भविष्य परिवर्तित हो जाएगा।  परंतु कई वर्षों के इंतजार के बावजूद कोई नहीं आया इसलिए उसे किसी बौद्ध भिक्षु के आने का बेसब्री से इंतजार था।

परंतु एक दिन राजा को एक संदेश मिला जिसके अनुसार चीन में 2 राजा हिमालय पार करके चीन में प्रवेश करेंगे। तथा चीन के लोगों को बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रचार प्रसार करेंगे।

इसी बात को सुनकर राजा काफी प्रसन्न हो गया था और  उनके स्वागत की काफी तैयारी करी थी और फिर एक दिन ऐसा हुआ, चीन के राज्य सीमा में दो बौद्ध भिक्षु नजर आए।

उनमें से एक बोधिधर्मन थे तथा दूसरे उनके शिष्य!

राजा को यह संदेश मिलते ही उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। जब राजा ने उन दोनों को देखा तो उसके चेहरे पर प्रश्न के चिन्ह साफ दिखाई दिए, उसे लगा कोई महान वृद्ध, ज्ञानी भिक्षुक आएंगे परंतु यह तो कोई साधारण युवा प्रतीत होते थे।

22 वर्ष की उम्र में बोधिधर्मन मोक्ष की प्रथम अवस्था पार कर चुके थे। हालांकि वे अभी युवा थे और लंबी यात्रा के बाद थके हारे नजर आ रहे थे। राजा को किसी ऐसे भिक्षुक के आने का अंदेशा था जो ज्ञानी एवं वृद्ध हो।

राजा ने निराश मन से उन दोनों का स्वागत किया तथा उन्हें शिविर में बुलाकर उनके रहने एवं भोजन की व्यवस्था की। तथा कुछ दिन बाद राजा एवं बोधिधर्म एक साथ बैठे तथा उनके बीच वार्तालाप शुरू होने लगी।

राजा ने बोधिधर्म से पूछा क्या मैं आपसे एक प्रश्न करूं?

बोधिधर्म ने अपनी सहमति प्रकट की तथा राजा ने पूछा इस सृष्टि का क्या स्त्रोत है?

यह सुनकर बोधिधर्म मुस्कुराए और कहा यह कैसा अजीब प्रश्न है।

अब राजा को यह सुनकर अपमानित महसूस हुआ। तथा उसने विचार किया कि जब यह युवक इतना महत्वपूर्ण प्रश्न को मूर्खतापूर्ण बता रहा है तो इसको भला क्या ज्ञान होगा।

राजा ने फिर एक दूसरा प्रश्न पूछा और कहां मेरे अस्तित्व का क्या स्त्रोत है?

फिर से बोधिधर्म हंसे और कहा फिर से वही मूर्खतापूर्ण प्रश्न क्यों कर रहे हो।

राजा क्रोधित हो उठा और विचार करने लगा।

धर्म एवं दर्शन के यह दोनों प्रश्न को यह युवक मूर्खतापूर्ण कह रहा है, यह स्वयं मूर्ख है।

राजा के मन में क्रोध की ज्वाला जगने लगी तथा फिर भी उसने अपने क्रोध को नियंत्रण करते हुए तीसरा प्रश्न पूछा की बौद्ध धर्म ही हेतु मैंने यह सभी कार्य किए हैं क्या इन धार्मिक कार्यों से मुझे मुक्ति मिल पाएगी?

यह सुनते ही बोधिधर्म इस बार गंभीर हो उठे तथा उन्होंने राजा से कहा आपका और मुक्ति से कोई संबंध नहीं है। तुम सातवे नरक में गिरोगे

यह शब्द सुनते ही राजा आग बबूला हो गया एवं राजा के आदेश पर बोधिधर्म को राज्य से बाहर कर दिया गया। लेकिन इस बात की परवाह किए बिना बोधिधर्मन अब पर्वत मैं जाकर अपने शिष्यों के साथ ध्यान करने लगे तथा जिस पर्वत पर वे ध्यान कर रहे थे उसे चाय के नाम से जाना जाता था।

1 दिन भिक्षुको को देखा कि उस पर्वत पर कुछ हरी हरी पत्तियां दिखाई दे रही हैं। बोधिधर्म ने कुछ समय तक उन पतियों की जांच पड़ताल की और कहा कि यदि इन पत्तियों को उबालकर इनका रस पिया जाए तो इससे नींद भाग सकती है। तथा सभी भिक्षुको को रात्रि के समय ध्यान करने में मदद मिलेगी। और इस तरह चाय की खोज हुई।

Bodhidharma Quotes in Hindi
सब रास्ता जानते हैं; कुछ वास्तव में यह चलना।
अज्ञान में नहीं उलझना ज्ञान है।
स्वयं को शब्दों से मुक्त करना ही मुक्ति है।
कई सड़कें मार्ग की ओर ले जाती हैं, लेकिन मूल रूप से केवल दो हैं: कारण और अभ्यास।
जब तक आप एक बेजान रूप से रोमांचित होते हैं, तब तक आप स्वतंत्र नहीं होते।
बुद्ध को खोजने के लिए आपको केवल अपना स्वभाव देखना है।
सूत्र के अनुसार, बुरे कर्मों का परिणाम कठिन होता है और अच्छे कर्मों का परिणाम आशीर्वाद होता है।
बुद्ध जन्म और मृत्यु के माध्यम से स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ते हैं, दिखाई देते हैं और गायब हो जाते हैं।
लेकिन जब सफलता और असफलता परिस्थितियों पर निर्भर करती है, तो मन न तो लहराता है और न ही घिसता है।
Bodhidharma Quotes in English
“Those who worship don't know, and those who know don't worship.”
― Bodhidharma
“All know the way; few actually walk it.”
― Bodhidharma
Not engaging in ignorance is wisdom.
“Not thinking about anything is Zen. Once you know this, walking, sitting, or lying down, everything you do is Zen.”
― Bodhidharma, The Zen Teaching of Bodhidharma
निष्कर्ष

Bodhidharma Books

  1. The Zen Teaching of Bodhidharma
  2. The Zen Teaching of Bodhidharma (English and Chinese Edition) by Bodhidharma(1989-11-01)

Bodhidharma Movie

7aum Arivu: चीन से डोंग ली जैविक युद्ध शुरू करने के लिए भारत आता है। हालांकि, एक आनुवंशिक इंजीनियरिंग छात्र डोंग ली को हराने के लिए अपने वंशज की मदद से बोधिधर्म के कौशल को पुनर्जीवित करने की कोशिश करता है।

  1. रिलीज़ की तारीख: 25 अक्टूबर 2011 (भारत)
  2. निर्देशक: A.R. Murugadoss
  3. संगीत निर्देशक: Harris Jayaraj

बोधिधर्म की मृत्यु कैसे हुई?

भोजन में जहर डालकर हुई बोधिधर्म की मृत्यु।

Was Bodhidharma Indian? | क्या बोधिधर्म भारतीय थे?

एक भारतीय परंपरा बोधिधर्म को कांचीपुरम के पल्लव राजा के तीसरे पुत्र के रूप में मानती है। यह दक्षिण पूर्व एशियाई परंपराओं के अनुरूप है, जिसमें बोधिधर्म का वर्णन एक पूर्व दक्षिण भारतीय तमिल राजकुमार के रूप में किया गया है जिन्होंने अपनी कुंडलिनी को जगाया था और भिक्षु बनने के लिए शाही जीवन त्याग दिया था।

Who is the father of Bodhidharma? | बोधिधर्म के पिता कौन हैं?

बोधिधर्म एक बौद्ध भिक्षु थे, जो 5 वीं / 6 वीं शताब्दी के दौरान रहते थे और पारंपरिक रूप से उन्हें चीन के प्रमुख पितृसत्ता और ज़ेन (चीनी: चान, संस्कृत: ध्यान) के ट्रांसमीटर के रूप में श्रेय दिया जाता है। वह पल्लव राजवंश के एक तमिल राजा के तीसरे पुत्र थे

What did Bodhidharma teach? | बोधिधर्म ने क्या सिखाया?

जैसे-जैसे उनकी कथा बढ़ती गई, बोधिधर्म को यह सिखाने का श्रेय दिया गया कि ध्यान बुद्ध की उपदेशों की वापसी थी। उन्हें Shaolin Monastery के भिक्षुओं का समर्थन करने के लिए भी श्रेय दिया गया था – जो कि मार्शल आर्ट में अपने ध्यान और प्रशिक्षण के लिए प्रसिद्ध थे।

When did Bodhidharma die? | बोधिधर्म की मृत्यु कब हुई?

540 ई


इस लेख में हमने बोधिधर्मन का इतिहास एवं उनसे जुड़ी ऐतिहासिक कहानियों के बारे में जाना।

उम्मीद है बोधिधर्म का इतिहास के विषय में पढ़ना आपके लिए ज्ञानवर्धक साबित हुआ होगा।

आपको यह लेख कैसा लगा टिप्पणी बॉक्स में जरूर बताएं। साथ ही इस जानकारी को सोशल मीडिया पर भी अवश्य शेयर करें।

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