दीपावली का महत्व, अर्थ, पूजा विधि और निबंध
आप सभी दिवाली जरूर मनाते होंगे लेकिन आप में से कुछ को ही दीपावली का महत्व मालूम होगा। आइये, आज इस लेख को अंत तक पढ़ कर दिवाली का महत्व जानते हैं।
दीपावली का महत्व हिंदी में
दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों “दीप“ अर्थात “दिया“ व “आवली“ अर्थात “लाइन“ या “श्रृंखला“ के मिश्रण से हुआ है।
इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते है उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से भी पुकार जाता है। शायद आपको जानकार हैरानी भी होगी कि दीपावली सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि भारत से बाहर भी कई देशों में बहुत धूम धाम से मनाई जाती है, जैसे कि-
- नेपाल
- श्रीलंका
- म्यांमार
- मारीशस
- गुयाना
- त्रिनिदाद और टोबैगो
- सूरीनाम
- मलेशिया
- सिंगापुर
- फिजी
- पाकिस्तान
- ऑस्ट्रेलिया
और तो और इन देशों में दिवाली के शुभ अवसर पर सरकारी अवकाश भी होता है।
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दीपावली क्यों मनाते है?
दिवाली पर निबंध हिंदी में
दीपावली या दीवाली अर्थात “रोशनी का त्योहार“ शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है।
इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
यह पर्व अधिकतर ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है।
भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दिवाली यही चरितार्थ करती है-
असतो मा सद्गमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर – मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
Diwali Essay in Hindi
चलिए अब जानते है कि दीपावली का महत्व क्या है-
जैसा की हम सभी जानते है कि भारत में कई धर्म और जाती के लोग रहते है और अपना जीवन व्यतीत करते हैं। सभी धर्म का अपना अलग नियम और कानून होता है, ठीक उसी तरह दिवाली का महत्व भी हर धर्म में अलग-अलग है।
दीपावली नेपाल और भारत में सबसे सुखद छुट्टियों में से एक है, लोग दिवाली के अवसर पर अपने घरों को साफ कर उन्हें उत्सव के लिए सजाते हैं। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।
दीपावली नेपाल और भारत में सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक भी है, इस दौरान लोग कार और सोने के गहनों के रूप में भी महंगे आइटम तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरणों, रसोई के बर्तन आदि खरीदते हैं। लोग अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को उपहार स्वरूप आम तौर पर मिठाइयाँ व सूखे मेवे देते हैं।
इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों के बारे में सुनते हैं। इस दौरान लड़कियाँ और महिलाएँ खरीदारी के लिए जाती है और फर्श, दरवाजे के पास और रास्तों पर रंगोली और अन्य रचनात्मक पैटर्न बनाती हैं। युवा और वयस्क आतिशबाजी और प्रकाश व्यवस्था में एक दूसरे की सहायता करते हैं।
क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाजों में बदलाव पाया जाता है, धन और समृद्धि की देवी – लक्ष्मी जी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है। दीवाली की रात को, आतिशबाजी आसमान को रोशन कर देती है| बाद में, परिवार के सदस्यों और आमंत्रित दोस्त भोजन और मिठाइयों के साथ रात को मनाते हैं.
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दीपावली का आध्यात्मिक महत्त्व: Short Essay on Diwali Festival in Hindi Language
दीपावली के विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय के दर्शाते हैं।
हिंदू दर्शन में योग, वेदांत, और सामख्या विद्यालय सभी में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध अनंत, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीवाली, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है। यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि दिवाली हिन्दुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। शायद आपको मालूम ना हो कि दिवाली मनाने की पीछे हिन्दू धर्म में भी अलग अलग वजह है, आइये जानते हैं कुछ प्रमुख वजह-
दीपावली पर जुआ क्यों खेलते हैं?
दीपावली पर्व में अनेक स्थानों पर जुआ खेला जाता है, रात भर खेले जाने वाले जुए में जहां कई लोग मालामाल हो जाते हैं। तो वहीं कई लोगों को अपनी सारी जमा पूंजी दाव पर लगानी पड़ती है।
मान्यता है दीपावली के दिन भगवान शिव एवं मां पार्वती ने भी जुआ खेला था। जिसमें भगवान शंकर को हार का सामना करना पड़ा था और तभी से यह प्रथा चली आ रही है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि लोग शास्त्रों में लिखे गए अच्छे कर्मों, निर्देशों का पालन नहीं करते है परंतु कुछ दुर्गुणों को तुरंत मान लेते है। हालांकि, भगवान शिव मां पार्वती के बीच खेले गए इस जुए का ठोस प्रमाण किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता। इसके बावजूद भी जुए को दीपावली के मौके पर खेलना अपने भाग्य की परीक्षा लेने से जोड़ा जाता है।
दीपावली की शाम आते ही रात्रि के समय शुरू होने वाला यह खेल सुबह तक चलता रहता है। खेल में पैसा लगाकर जीत और हार की किस्मत आजमाई जाती है। हालांकि, भारत में जुआ खेलने का यह रिवाज कोई नया नहीं है काफी समय से जुआ खेला जा रहा है। बस समय के साथ इसे खेलने के तरीके में परिवर्तन आ चुका है परंतु आज भी लोगों के बीच पसंदीदा खेल बड़ी मात्रा में खेला जाता है जो भाग्य से जुड़ा हुआ है।
दीपावली पूजन का समय शुभ मुहूर्त
इस वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या का दिन 14 नवंबर शनिवार को है। और अमावस्या का समय 14 नवंबर को 2:00 बजे से शुरू होकर अगले दिन अर्थात 15 नवंबर कि सुबह 10:00 बजे तक रहेगा।। अतः 2020 में दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी।
2020 दीपावली में लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त संध्या के समय 5:28 से शुरू होकर शाम के 7:00 बजकर 24 मिनट के बीच है। यह मुहूर्त प्रदोष काल में की जाने वाली पूजा के लिए है। रात्रि के समय लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त का समय रात 08 बजकर 47 मिनट से देर रात 01 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। जबकि दीपावली के दिन मध्य रात्रि में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त का समय 11:59 से लेकर 12:32 तक का है। इस दौरान आपको लक्ष्मी पूजन कर लेना चाहिए।
दोपहर के समय लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 02 बजकर 17 मिनट से शाम को 04 बजकर 07 मिनट तक रहेगा।
जबकि 15 नवंबर को लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त प्रात काल 5 बजकर 04 मिनट से 06 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।
दीपावली मनाने का कारण क्या है?
प्रति वर्ष दीपावली बड़ी धूमधाम से भारतवर्ष में मनाई जाती है जिसके पीछे मान्यता है कि भगवान श्रीराम कार्तिक माह की अमावस्या के दिन वापस अयोध्या की ओर लौट आए थे, लेकिन उसके अलावा भी शास्त्रों में दीपावली मनाने के कई अन्य कारण बताए गए है। आइए उनके बारे में भी जानते हैं।
1. मां लक्ष्मी का अवतार दिवस
धन-धान्य हेतु दीपावली के मौके पर मां लक्ष्मी का पूजन सभी घरों में किया जाता है। मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की स्वामिनी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन मां लक्ष्मी इस ब्रह्माण्ड में आई और यह दिन उनके जन्म दिवस के तौर पर दीपावली पर्व के रूप में मनाया जाता है।
2. भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध
दीपावली पर्व के 2 दिन पहले नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाता है जिसके पीछे कारण है नरकासुर का भगवान कृष्ण द्वारा किया गया अंत।
काफी समय पुरानी बात है जब नरकासुर नामक राक्षस ने प्रदोष पुरम राज्य में अपने अत्याचार से जनता को दुखी कर रखा था लेकिन दुष्टों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लेने वाले भगवान श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध करके जनता को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई गई। और इसी खुशी में यह दिन बुराई के प्रति सत्य की जीत के लिए जाना जाता है।
3. भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी की मदद की
पौराणिक कथाओं में इस बात का भी वर्णन है, एक बार की बात है एक राजा बलि नामक महान दानव व्यक्ति था जो पूरे ब्रह्माण्ड को अपने काबू में रखना चाहता था। उसे भगवान का यह आशीर्वाद प्राप्त था तो उसने अपनी निरंकुश शक्तियों का प्रयोग करके पूरे ब्रह्माण्ड की धन संपत्ति पर अपना कब्जा कर लिया था। जिस वजह से चारों तरफ गरीबी छाई हुई थी और स्वयं मां लक्ष्मी को भी उसने कारागार में डाल दिया। और उसके इन अत्याचारों को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने पांचवे अवतार वामन अवतार में आकर राजा बलि के कारागार से मां लक्ष्मी को छुड़ाया और इस प्रकार यह दिन घमंड पर सत्य की विजय के साथ मनाया जाने लगा।
4. अपने राज्य में पांडवों का आगमन
महाभारत के अनुसार कौरवों से पांडवों को मिली जुए में हार के लिए सजा हेतु 12 वर्ष तक वनों में निवास करने के बाद जब पांडव वापस अपने राज्य में लौटे तो वह दिन कार्तिक माह की अमावस्या का था। और पांडवों की अपनी नगरी पर पहुंचने कि खुशी में राज्य के लोगों ने उनके आने की खुशी में दीपक जला कर उनका स्वागत किया। अतः इस प्रकार दीपावली मनाने के पीछे एक और पौराणिक कथा जुड़ जाती है।
Why We Celebrate Diwali Festival in Hindi
5 Importance Lines Of Diwali Festival in Hindi
- 👉 प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं.
- 👉 अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं.
- 👉 कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं| दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है.
- 👉 भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं.
- 👉 मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है.
दीपावली की रात वह दिन है जब माता लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। माता लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं।
मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती है और जो लोग इस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते है। भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में दीवाली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए।
आइये इस लेख के अंत में जानते हैं कि दिवाली का ऐतिहासिक महत्व क्या है? दीपावली पर निबंध हिंदी में
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय “ओम” कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।
- दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे।
- मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे।
- शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
मेरा यह लेख अब यही पर समाप्त हो रहा है, आशा है इस लेख के माध्यम से आपको बहुत जानकारी मिली होगी और अब आप इस लेख को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर जरूर करेंगे। कमेंट करके हमको बताये की दीपावली का महत्व पढ़कर आपको कैसा लगा? आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं..!
deepawali ke upar bhut he informative article share kiya hai aapne himanshu ji. thanks for sharing with us.